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नीरोग ज्ञानस्वरूपका चिन्तन - शरीर में नाना रोग होते है। वे शरीरके विकारसे होते है। वात, पित्त, कफ - ये तीन जो उपधातुये है, इनका जो समान अनुतापसे रहना है उसमें भंग हो जाय, विषमता आ जाय तो इस शरीरमें रोग पैदा हो जाता है। यह शरीर ही मै नही हूं तो मै रोगका क्या अनुभव करूँ ? ज्ञानी पुरूष निरन्तर निज ज्ञानस्वरूपका ही चिन्तन करते है।
धन जीवनविषयक मोहके अभावमें कर्मफलका अननुभव – जगत के जीवोको ये कर्म सता रहे है। केवल दो बातों पर ये कर्म सता रहे है। यदि उन दो बातों का मोह न रहे तो फिर कर्मोका सताना ही कुछ न ठहरे। वे दो बातें है धन और जीवन। जीवनका लोभ ये दो लोभ है तब कर्म सता रहे है, न रहे ये तो कर्म क्या सतायेगे? जैसे कोई पक्षी कहींसे कुछ खानेकी चीज चोंचमें ले आये तो उसे देखकर बीसो पक्षी उस पक्षी के ऊपर टूट पड़ते है। वह पक्षी अपनी जान बचानेको तरसने लगता है। अरे क्यों दुःख मानता है वह पक्षी? जो चोंचंमें लिए है उसको चोंच से निकालकर बाहर फेंक, फिर कोई भी पक्षी उसे न सतायेगा। ऐसे ही इस जीव ने धन और जीवन इन दोनोसे राग किया है ये सदा काल तक जीते रहना चाहते है और धन सम्पदाकी कुछ सीमा भी नही बनाना चाहते। लखपति हो जाय तो करोड़पतिकी आशा, करोड़पति हो जाय तो अरबपतिकी आशा। जो आज बहुत बड़े धनी है उनको अब जरूरत भी कुछ नही है। तो धर्मसाधनामें क्यो नही जुट जाते? तष्णा लगी है तब तक ये कर्म सताने वाले बनते है। ये दो बातें ही न रहे,, न धनकी तृष्णा भावे और न जीवनका लोभ करे, फिर कर्मका सताना ही क्या रहेगा?
ज्ञानीकी ज्ञान से अविचलितता – भैया ! कुछ यथार्थ ज्ञान तो करो जीऊं तो जीऊ तो क्या? मै आत्मा तो अमर हूं। इसका प्राण तो ज्ञान दर्शन है। उसका कभी वियोग नही होता। क्या क्लेष है? मेरा धन तो मेरा स्वरूप है वह कही नही जाता। धन जाय तो जाय क्या क्लेश है, यों धन और जीवन दोनो का मोह छोड़ दे तो फिर कर्म क्या कर सकते है? जब हम स्वंय ही कमजोर है, उपादान निर्बल है तो अनेक दुखी होनेके निमित्त मिल जायेगे। जब आत्मा बलिष्ठ है, ज्ञानबल जागरूक है, अपने शुद्ध स्वभावी परख है, उसका ही ग्रहण हो रहा है तब सारा जगेत भी प्रतिकूल हो जाय कोई कुछ भी बातें कहें क्या असर होता है इस ज्ञानीपर। यह ज्ञानी पुरूष तो जो अपने उपयोगमें कर्तव्य निश्चित कर चुका है उस कर्तव्य से विचलत नही होता है।
संसार व्यवहार का वैचित्रय - यह संसार बड़ा विकट है। कोई पुरूष अधिक बात बोले तो लोग कहते है कि यह बड़ा बकवादी है, यदि कुछ बात न बोले, चुप रहे तो लोग कहते है, कि यह बड़े गुरूर वाला है, किसी से बोलता नही है। कोई मधुर बात बोले तो लोग कहते है कि यह जबान का मीठा है पर अंतरंग में मिठाई नही है, कोई कठोर वचन बोले तो कहते है कि इसे बोलने का कुछ भी सहूर नही है। यह तो लट्ठमार वचन बोलता
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