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प्रभुका आदर्श व आदेश जिनके संकट समाप्त हो चुके है ऐसे प्रभु भगवानका यह उपदेश है कि जिस उपाय से हम संकटोसे मुक्त हुए है इसी उपायको भव्यजन करेंगे तो संकटोसे छूटनेका अवसर पावेगे। संकटोसे छूटने का उपाय भेदविज्ञान के सिवाय और कुछ नही है। एक ही निर्णय है। कही ऐसा अनियम नही है किसीको धनसे आनन्द मिलता हो, किसीको इज्जत मिलने से आनन्द मिलता हो, किसीको अनेक काम मिलने से आनन्द मिलता हो, किसी को अच्छा परिवार रहनेसे आनन्द मिलता हो, जिसे भी आनन्द मिलेगा वह भेदविज्ञान से मिलेगा ।
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मिथ्या आशयमें क्लेशकी प्राकृतिकता जो जीव शरीरादिक से अपने को अभेदरूप से मानता है, अर्थात यह मैं हूँ ऐसी उनमें आत्मकल्पना करता है उस शारीरिक कष्ट भी होता है, मानसिक कष्ट भी होता है और क्षेत्र समागम आदिके कारण भी कष्ट हो जाता है । मिथ्या धारण हो, प्रतीति हो वहाँ दुःख होना उस मिथ्या श्रद्वानके कारण प्राकृतिक है। दुःख किसी परवस्तुसे नही होता, दुःख भी अपने आपकी कल्पना से, मिथ्या धरणासे होता है। सारी चीजें अनित्य है । जो घर मिला है, घरमें जो कुछ है, जितना संग जुटा है वह सब अनित्य है। उन्हे कोई नित्य माने और ये मोही मानते ही है। ये दूसरे के समागमको तो अनित्य झट समझ लेते है, ये समागम मिट जायेगे, मर जायेगे लोग, कोई न रहेंगे यहाँ, किन्तु अपने समागमके सम्बंधमें यह विशद बोध नही है कि यह भी मिट जायगा । यदि यह ध्यान में रहे कि यह सब मिट जायगा तो फिर इसकी आसक्ति नही रह सकती है। इसने अनित्यको नित्य मान लिया, इसीसे आफते लग गयी ।
भ्रांतिमें उलझन और निर्भ्रान्तिमें सुलझन भैया! अनित्यको नित्य मानने के विकल्प में एक आपत्ति तो यह है कि जब मान लिया कि ये सदा रहेगें तो उनके बढ़ावाके लिए, संग्रहके लिए, जीवनभर इसे श्रम की ज्वालामें झुकना पड़ता है। दूसरी आपत्ति यह है यह अनित्यको नित्य मान लेनेसे तो कही यह जगजाल नित्य तो नही हो जाता। बाह्रासमागम तो अपनी परिणतिके माफिक बिछुड़ जायेगे। यह मिथ्यादृष्टि जीव अनित्यको नित्य मानता है, सो ज वियोग होता है तब उसके वियोग में दुःखी होता है। यदि अनित्यको अनित्य ही मानता होता तो उसमें लाभ था । पहिला लाभ यह कि इन बाह्रा पदार्थो के संचय के लिए अपना जीवन न समझता और श्रममें समय न गंवाता और दूसरा लाभ यह होता कि किसी भी क्षण जब ये समागम बिछुड़ते तो यह क्लेश न मानता ।
अज्ञानके फल फूल जितने भी लोग घरमें बस रहे है, जिन दो एक प्राणियोंसे सम्बन्ध मान रखा है, उनका वियोग जरूर होगा। पुरुष स्त्री है, कभी तो वियोग होगा ही । पुरुषका भी वियोग पहिले सम्भव हो सकता है और स्त्रीका भी वियोग पहिले सम्भव हो सकता है। वियोगकालमें कष्ट मानेगें। यह बात प्रायः सभी मनुष्योपर गुजर रही है। जब तक मनके प्रतिकूल कोई घटना नही आती है, मौजमें समय कट रहा है और यह बीता
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