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परपदार्थोमें उत्कृष्ट चैतन्यस्वरूप हूं। इस ही तत्वकी आराधनाके प्रसाद से भ्ज्ञगवान अरंहत हुए है। जिनका हम पूजन वंदन करते है। उनकें और कला ही क्या थी जिससे वे आज हम लोगो के पूज्य कहलाते है, वह कला है स्वभाव दर्शनकी कला। वे अपने इस चित्स्वभाव में मग्न हुए थे, उसके ही प्रसाद से भव भवके संचित उनके कर्म जाल नष्ट हुए
और अनन्त चतुष्टयसम्पन्न सर्व भव्य जीवोके उपास्य हुए, ऐसा होने का मेरेमें स्वभाव है। ज्ञानी संत इस स्वभावकी उपासना किया करते है।
दुःखसंदोहभागित्वं संयोगादिह देहिनाम।
त्यजाम्येनं ततः सर्वमनोवाक्कायकर्मभिः ।।28।।
ज्ञानी सकल संन्यास का चितंन - ज्ञानी पुरूष चिन्तन करता है और संकल्प करता है कि इस प्राणी को जितने भी क्लेश समूहका भाजन होना पड़ा है वह सब इस शरीर आदिके संयोग से ही होना पड़ा है। इस कारण मै मनसे, वचनसे और कायसे इन समस्त समागमों को छोड़ता हूं। मै भी अमूर्त ज्ञानानन्दमय केवल अपने स्वरूप मात्र हूं। इस मुझ आत्मतत्वमें किसी दूसरे पदार्थका सम्बंध भी नही है। ऐसी दृष्टि हो जाय और समस्त बाहा पदा से उपेक्षा हो जाय तो यही उनका छोड़ना कहलाता है। इसमें कषयकी बात कुछ नही है। जैसे कोई लोग कहें कि वाह! मानते जावो ऐसा कि मैं सबसे न्यारा हूं। और छोड़ो कुछ भी नही। यहाँ कुछ भी छलकी बात नही है, केवल ऐसा अनुभव में उतर गया कि मै सबसे विविक्त हूं तो उसने सबको छोड़ दिया। अब ऐसी प्रतीति बहुत काल तक बनी रहती है तो बहुत काल तक छूटा हुआ रहेगा और कुछ ही क्षण बाद पूर्व वासनाके कारण फिर उनमें चित्त गया तो वह ग्रहणका ग्रहण ही है।
आनंदका का भेदविज्ञान - भैया! जितना भी आनन्द मिलेगा प्रत्येक जीवको वह भेदविज्ञान ही मिलेगा। भेदविज्ञान बिना आनन्द मिलेका अन्य कोई उपाय ही नही हे लोकमें कही ऐसा नही है कि धनिकोको करोड़ो के धन वैभवसे आनन्द मिल जायगा और गरीबो को भेदविज्ञान आनन्द मिलेगा। जिन्हे भी आनन्द मिलेगा भेदविज्ञान ही मिलेगा, चाहे अमीर हो चाहे गरीब । कारण यह है कि आनन्द में बाधाको डालने वाला विकल्प हुआ करता है और विकल्पोकी उत्पत्ति होने के लिए परपदार्थ आश्रय होता है। बाहा साधन तो जिसको जितने मिले है, उसे प्रायः उतने विकल्प बढ़ेगे, और जिसके विकल्प बढ़े हुए है उन्हे आनन्द न मिलेगा। समागम हो तब भी, न हो तब भी, आनन्द तो भेदविज्ञान से ही मिलेगा। लोग कभी-कभी अपनेमें बड़ा झंझट समझते है। मै बहुत चक्करमें पड़ गया, मुझे इतना क्लेश है। अरे ये सारे क्लेश समस्त संकट भेदविज्ञान के उपाय से सबसे न्यारा अपनेको मान लेनेसे मिट जाते है। सबका विकल्प तोड़ने से अपने ज्ञानस्वरूपका अनुभव होनेपर सारे संकट समाप्त हो जाते है।
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