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अनन्तकाल से भटकते हुए इस आत्मप्रभु की और यदि कुछ करूणा जगती है तो सर्वप्रथम तत्वज्ञान का अभ्यास बनावे। धन वैभव पुद्गल ढेर का संचय - इसमें आस्था बुद्वि न रक्खें, ये शान्ति के कारण न कभी हुए है और न हो सकते है।
प्रत्येक पदार्थ के अद्वैतता के निर्णय में मुक्ति का आरम्भ - भैया ! जब यह जीव ही बाहा विकल्पो को तोड़कर अपने आपके सहजस्वरूप में मग्न होगा तब उसे शान्ति प्राप्त होगी। यों अद्वैत स्वरूप के ध्यान के लिए यह निर्णय दिया है कि जब तुम कुछ देते ही नही, तुम किसी दूसरे में कुछ कर सकते ही नही तो तुम्हारा परपदार्थो से क्या सम्बंध है? तुम्हारे प्रत्येक परिणमन में तुम ही परिणमन वाले हो और तुम्हारा ही वह परणिमन है। फिर सम्बंध क्या किसी अन्य पदार्थ से? जब यह आत्मा ही ध्यान है, आत्मा ही ध्याता है तो फिर इसका किसी भी पदार्थ से रंच सम्बंध नही है। एक निज ज्ञानानन्दस्वरूप ही जो ध्यान करता है वह शीघ्र ही निकट काल में मोक्षपद प्राप्त करता है।
इष्टोपदेश प्रवचन द्वितीय भाग
वध्यते मुच्यते जीवः सममो निर्ममः क्रमात।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन निर्ममत्वं विचिन्तयेत् ।।26 ।।
ममत्व व निमर्मत्व बन्ध व मोक्ष का कारण - यह जीव ममता परिणाम से सहित होता हुआ कर्मो से बंध जाता है और ममतारहित होता हुआ कर्मो छूट जाता है, इस कारण सर्वप्रकार से प्रयत्न करके अपने आपके निर्ममत्वरूप का चिन्तन करना चाहिए। इस श्लोक में बंधने और छूटने का विधान बताया गया है। जो पुरूष ममत्व परिणाम रखता है, जो वस्तु अपनी नही है, अपने आपके स्वरूप को छोड़कर अन्य जितने भी पदार्थ है वे सभी
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