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________________ अपने नही है, उनको जो अपना मानता है वह कर्मों से बंध जाता है। परपदार्थो को अपना मानना यह तो है बन्ध का कारण, और परपदार्थो में ममत्व न होना यह है मोक्ष का कारण । इस कारण संसार संकटो से मुक्ति चाहने वाले पुरूषो को सर्व तरह से तन, मन, धन, वचन सर्व कुछ न्यौछावर करके, संन्यास करके अपने आपको ममतारिहत चिन्तन करना चाहिए । ममत्वभारवाही भैया ! यह जीव निरन्तर दुःखी रहा करना है। इसका सुख भी दुःख है और दुःख तो दुःख है ही । इन समस्त क्लेशो का कारण है अपने आपको किसी न किसी परिणमन रूप अनुभवन करते रहना । जो यह मन में सोचेगा कि मै इसका बाप हूं, अमुक हूं तो इस चिन्तन के कारण बाप के नाते से अनुकूलताओं और प्रतिकूलताओं का क्षोभ होगा, खेद होगा, उसका बोझ इसी को ही ढोना पड़ेगा, कोई दूसरा नही ढो सकता । - दृष्टान्त द्वारा ममत्व के भार का प्रदर्शन एक साधु था, वह जंगल में तपस्या कर रहा था। वहाँ अचानक कोई राजा पहुँच गया, कहा महाराज ! इस प्रकार की गर्मी के दिनो में इतना बड़ा कष्ट क्यों सह रहे हो? पैर में जूते नही है, छतरी भी नही है, बदन भी नंगा है, क्यो इतनी गर्मी ज्येष्ठ के दिनो में सह रहे हो? महाराज और कुछ नही तो हम आपको एक छतरी देते है सो छतरी लगाकर चला कना । साधु बोला बहुत अच्छी बात है, ऊपर की घूप तो छाते से मिट जायगी, पर नीचे जो पृथ्वी की गर्मी है उसका क्या इलाज करें ? तो राजा बोला - महाराज आपको बढ़िया रेशम के जूते पहुँचा देगे। साधु ने कहा - अच्छा यह भी समस्या हल हो गयी। किन्तु नंगा बदन है, लू लगती है, इसका क्या इलाज करे? राजा ने कहा महाराज कपड़े बनवा देंगें साधु ने कहा कि आपने यह तो बहुत आराम की बात कही, पर जब जूता भी पहिन लिया, छाता भी मिल गया कपड़े भी पहिन लिये तो फिर तिष्ठ तिष्ठ कौन कहेगा, कौन फिर पड़गाहेगा ? राजा ने कहा महाराज इसकी कुछ फिक्र न करो, आपके आहार के लिए चार पाँच गाँव लगा देगे? उनकी आमदनी से आपका गुजारा चलेगा। ठीक है, पर खाना कौन बनावेगा ? तो महाराज आप की शादी करवा देगें, स्त्री हो जायगी । साधु ने कहा कि यह तो ठीक है, पर स्त्री से बच्चा होगें तो उनमें से कोई मरेगा भी। मरने पर कौन रोवेगा ? तो राजा बोला - महाराज और तो हम सब कर सकते है पर उन बच्चा-बच्ची के मरने पर रोना आपको ही पड़ेगा । क्योंकि जिसमें ममत्व होगा, वही तो रावेगा, कोई दूसरा न रोने आयेगा । तो साधु बोला कि जिस छतरी के कारण मुझे रोने की भी नौबत आयगी ऐसी आपकी यह छतरी भी हमें न चाहिए। हमें तो अपने में ही चैन मानना है, हम तो अपने में ही शान्ति पा रहे है । - 107 - पर में आत्मीयता की बुद्धि का अधेंरा - भैया ! जो ममत्व करेगा वही प्रत्येक प्रकार से बंधेगा, जो ममत्वरहित होगा वह छूट जायेगा। सो समस्त प्रयत्न करके अपने आपको ममत्वरहित चिन्तन करना चाहिए। परपदार्थो को मेरा है, मेरा है - ऐसा अंतरंग में विश्वास
SR No.007871
Book TitleIshtopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala Merath
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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