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________________ तब तो यह मोही शान्ति ही क्या कर सकेगा? बाह्रा पदार्थ है तो दो ही तो बाते है, या बाहा पदार्थोका संयोग होगा या वियोग होगा। यह मोही जीव न संयोगमें शान्ति कर सकता है और न वियोग में शान्ति कर सकता है। शांति तत्वज्ञान बिना त्रिकाल हो ही नही सकती है। यह सब कर्मशत्रुका आक्रमण है बाह्रा पदार्था की और दृष्टि लगाना यही मूढ़ता है, कलुषता है इस जीवकी । संसारभ्रमणका यही एक कारण है । सम्बन्धकारकके अभावसे सम्बन्धकी अवास्तविकताकी सिद्वि समस्त पदार्थ अपने आपके स्वरूप में अद्वैत है वे वे ही के वे है, उनमें किसी दूसरे पदार्थका सम्बंध नही है । देखिए ! संस्कृतके जो जानने वाले है वे समझते है । - संस्कृतमे कारक 6 कहे जाते हैउन 6 कारको में कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण ये 6 आये है । इन कारकोमें सम्बन्धका नाम तक भी नही लिया गया है। उसका अर्थ यही है कि सम्बन्ध कोई तात्विक चीज नही है । सम्बंध भी यदि परमार्थ होता, कारक होता तो इसे भी इन कारको में गिनवाया जाता। लोक प्रयोगमें भी देखलो - सांपने यदि अपने शरीरको कुण्डली रूप बना लिया तो इतना तो कहा जा सकता है कि साँपने अपनेको अपने द्वारा अपने लिए अपनेसे अपनेमें गोल बना लिया है, पर किसका गोल बना लिया है इसका उत्तर औधा हुआ उत्तर होगा । अरे जब वही एक सापं है । और वह अपने परिणमन रहा है तो दूसरे का किसका नाम लोगे? सांपने किसका गोल बना दिया है? कोई सम्बंध नही हो सकता है। जबरदस्ती की बात दूसरी है कि कुछ भी कह डाला जाय । तो कारक 6 हुआ करते है। सम्बंध नाम का कारक ही नहीं है। फिर जगतके पदार्थो में सम्बन्धकी खोज करके अपनी व्यग्रता क्यो लादी जा रही है? पदार्थो की गणना - जगतमें अनन्तानन्त जीव है जिनकी हद नही है। कबसे जीव मोक्ष चले जा रहे है, कोई दिन मुकर्रर करके कोई नही बता सकता है। अगर कोई दिन मुकर्रर कर दे तो यह प्रश्न होगा कि क्या उस दिनसे पहिले कोई मोक्ष न गया था? अगर कह दे कि हाँ इस दिन से पहिले कोई मोक्ष नही गया तो जब तक कोई मोक्ष न जा सका ऐसा संसार कितने दिनो तक रहा? उसका उत्तर दो। उसकी भी सीमा बनानी होगी। तो उससे पहिले संसार ही न था अभाव हो गया, फिर जब कुछ न था तो कुछ बन भी नही सकता है। अनन्त जीव समझ लीजिए मोक्ष चले गए और फिर भी अनन्तानन्त राशि बची हुई है, इसमें अनन्त मोक्ष चले जायेंगे, फिश्र भी जीव अनन्त ही बचे रहेंगे। कितनी अनन्तानन्त जीव राशि है । जीवराशि से अनन्तानन्तगुणे पुद्गल है। एक चौकी में कितने परमाणु है बताओ? हजार, लाख करोड़, असंख्यात, अनगिनते, कुछ भी तो बताओ। अरे असंख्यात, अनगिनते से भी ज्यादा । अनन्तानन्त । अनगिनतें और अनन्तानन्तमें फर्क है । अनगिनतेंका अर्थ यह कि गिनती न की जा सके परन्तु उनका अंत होगा, किन्तु अनन्तानंत 103
SR No.007871
Book TitleIshtopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala Merath
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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