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अप्पमाय-सुत्तं
(११३.) दुमपत्तए पडुयए जहा निवडड राङगणा अच्छए । एवं मणुयाण जीवियं, समय गोयम' मा पमायए || १ ||
(११३)
कुसग्गे जह ओसविन्दुए, थोवं चिट्ठइ लम्बमाणए । एवं मणुयाण जीवियं, समयं गोयम मा पमायए ॥ ॥
(११४)
इद
इन्तरियम्मि आउए, जीवियए बहुपञ्चवायए । विहरणा हि रयं पुरेकडं, समयं गोयम । मा पमायए || ३ ||
(११५)
दुलहे तु माणुसे भवे, चिरकालेा वि सन्त्र- पाणिं । मादाय विवाग कालो, समर्थ गोयम ! मा पमायए ॥४॥
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