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त्र्यप्रमाद-सूत्र
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जो मनुष्य ऊपर-ऊपर से संस्कृत जान पड़ते हैं परन्तु वस्तुतः तुच्छ हैं, दूसरों की निन्दा करनेवाले हैं, रागी - छपी हैं, परवश है, वे सब अवचरण वाले हैं- इस प्रकार विचार पूर्वक दुर्गुणों से घृणा करता हुआ मुमुक्षु शरीर-नाश पर्यन्त ( जीवनपर्यन्त ) केवल सद्गुणों की ही कामना करता रहे।