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: : अपरिग्रह-सूत्र
प्राणि-मान के सरक ज्ञातपुत्र (भगवान् महावीर) ने कुछ पस्न आदि स्थूल पदार्थों को परिग्रह नहीं घतलाया है। वास्तविक परिग्रह तो उन्होंने किसी भी पदार्थ पर मूर्चा का-थाशक्ति का रखना यतलाया है।
पूर्ण-संयमी को धन-धान्य और नौकर-चाकर भादि सभी प्रकार के परिप्रहों का त्याग करना होता है । समस्त पाप-कर्मों का परित्याग करके सर्वथा निम्मद होना तो और भी कठिन बात है।
(६०) जो संयमी ज्ञातपुग्न (भगवान् महावीर) के प्रवचनों में रत है, वे विड़ और उभेद्य आदि नमन तथा तेल, घी, गुड श्रादि किसी भी वस्तु के संग्रह करने का मन में नंकल्प तक नहीं करते।
( १) परिग्रह-विरक्त मुनि जो भी वस्त्र, पान, कम्बल और रजोहरण प्राशि वस्तुएँ रखते हैं, वे सब एर-मात्र संयम की रक्षा के किए ही रखते हैं- काम में लाते हैं । (इनके रखने में क्सिी प्रकार की भासत का भाव नहीं है।)