________________
ब्रह्मचर्य-मूत्र
(४) देवलोक महित समान संमार के शारीरिक तथा मानसिक सभी प्रकार के दुय का मूल पुस्-माय काम भोगों को पासना ही है। जो माध इस सम्बन्ध में वीतराग हो जाता छ, यह गारिक नया मानषिक सभी प्रकार के दुयो मे छूट जाता है।
जो मनुष्य इस कार दुष्कर प्राचर्य का पालन करता है, उमे टे. दानव, गन्धर्य, यक्ष, रास और शिन्नर श्रादि समी नमबार मते है।
यह प्रापचयं धर्म ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत है और जिनोपदिष्ट है । इस द्वारा पूर्वकाल में स्तिने ही जीव सिद्ध हो गये है, वर्तमान में हो रहे हैं, और भविष्य में होंगे।