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संस्करण का था जो सस्ता - साहित्य - मंडल, नई दिल्ली से निकला था । जैन समाजने अर्वौ रुपये सुंदरसे सुन्दर मंदिरों . और मूर्तियाँ पर व्यय किया है; महावीर जिनके उपदेश आदेश' प्रचारके लिये लाखों रुपये व्यय करना उसके लिये क्या कठिन है ?
श्रीबेचरदासनीके, ति. २९-६ - १९५२ के पोस्टकार्डसे विदित हुआ कि गुजरात युनिवर्सिटीने, प्राकृतभाषा के पाठ्यक्रममें, 'इन्टर' वर्गके लिये, महावीरवाणी को रख दिया है; यह बहुत सभाजनीय अभिनंदनीय काम किया है; इससे भी ग्रंथके प्रचार मे बहुत सहायता मिलेगी ।
सौर १९ आषाढ, २०१० वि०
( जूलाई, ३१९५३ ई० )
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(डाक्टर) भगवानदास
" शातिसदन", सिग्रा, बनारस - २