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________________ [ १७८ ] श्रद्धान-श्रद्धा-स्थितप्रज्ञ वीतराग आप्तपुरुषमें दृढ विश्वास । श्रमण -- स्वपरके कल्याणके लिए श्रम करनेवाला । यह शब्द जैन और बौद्ध साधुओके लिए व्यवहारमें प्रचलित है । श्रुत सुना हुआ ज्ञान - शास्त्रज्ञान । --- सकाम —— विवेक - ज्ञान - पूर्वक दुःख सुखादि सहन करने को प्रवृत्ति या स्वतंत्रविचारसे सहन करनेकी प्रवृत्ति | देखो अकाम । सचित्त - चित्तयुक्त - प्राणयुक्त - जीवसहित कोई भी पदार्थ । समिति — शारीरिक, वाचिक और मानसिक सावधानता । संवर आश्रवोंको रोकना, अनासक्त आत्माकी प्रवृत्तिआत्माकी शुद्ध प्रवृत्ति । --- सल्लेखना - मृत्यु ( शरीरान्त) तक चलनेवाली वह प्रवृत्ति जिससे कषायों को दूर करनेके लिए उनका पोषण और निर्वाह करनेवाले तमाम निमित्त कम किए जाते हों । ----- ज्ञानावरणीय -- ज्ञानके आवरणरूप कर्म ज्ञान, ज्ञानी या ज्ञानके साधनके प्रति द्वेषादि दुर्भाव रखनेसे ज्ञानावरणीय कर्म बंधते हैं । -*
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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