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________________ [ १७६ ] अतः नाययुक्त - ज्ञातपुत्र - भगवान महावीरका खास नाम है । निकाय - समूह, जीवनिकाय - जीवोंका समूह | निर्ग्रन्थ-गाँठ देकर रखने लायक कोई चीज़ जिनके पास नहीं है—अपरिग्रही साधु । निर्जरा -- कमको नाश करनेकी प्रवृत्ति - अनासक्त चित्तसे प्रवृत्ति करनेसे आत्माके सब कर्म नाश हो जाते है । परीषह — जब साधक साधना करता है तब जो जो विघ्न आते है उनके लिए ' परीषह' शब्द प्रयुक्त होता है । साधकको उन सब विघ्नोंको सहन करना चाहिए इसलिए उनका नाम 'परीषह' हुआ । पुद्गल - रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्दवाले जड़ पदार्थ या या जड़ पदार्थ के विविध रूप । प्रमाद - विषय कषाय मद्य अतिनिद्रा और विकथा आदिका प्रसंग - पाँच इन्द्रियोंके शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श ये पांच विषय, क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार कषाय, मद्य – मद्य और ऐसी ही अन्य मादक चीजें, अतिनिद्रा घोर निद्रा, विकथा संयमको घात करने
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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