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जातिमद-निधारण सूत्र
(३.३)
यह सुनिश्चित है कि प्रत्येक जीव भूतकाल मे यानी अपने पूर्व-जन्मों में अनेक बार ऊँचे गोत्र में जन्मा है और अनेक बार नत्र गोत्र में जनमा है।
केवल इमो कारण से वह न हीन है और न उत्तम। इस प्रकार , ममझ कर ऐसा कौन होगा जो गोत्रवाद का अभिमान रखेगाव · मानवाद को बढ़ाई करेगा ? ऐसी परिस्थिति में किस एकमे श्रामक्ति की जाय ? अर्थात् गत्र या जाति के कारण कोई भी मनुष्य प्राधक्ति करने योग्य नहीं है, इमी लिये समझदार मनुष्य जाति या गोत्र के कारण किसी पर प्रसन्न नहीं होता और कोप भी नहीं करता।
समझ-बूझ कर,सोच-विचार कर सब प्राणियों के साथ सहानुभूनि से वर्नना चाहिए और ऐसा समझने वाला ही ममतायुक्त है।