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________________ :२४: जातिमद-निवारण-सुत्तं जैनसंघ में केवल जाति का कोई मूल्य नही, गुणों का ही मूल्य प्रधान है, अत एव जातिमद अर्थात् 'मै अमुक उच्च जाति में जन्मा हूँ' या 'अमुक उच्च कुलमें व गोत्र में जन्मा हूँ' ऐसा कहकर जो मनुष्य अपनी जाति का, कुल का व गोत्र का अभिमान करता है और इसी अभिमान के कारण दूसरों का अपमान करता है और दूसरों को नाचीज समझता है उसको मूर्ख, मूढ, अज्ञानी कह कर खूब फटकारा गया है सौ.जातिमद, कुलमद,गोत्रमद,जानमद,तपमद तथा धनमद आदि अनेक प्रकार के मदों को सर्वथा त्याग करने को जैन शास्त्रों में बार-बार कहा गया है। इससे यह सुनिश्चित है कि जैनसंघ में या जैनप्रवचन में कोई भी मनुष्य जाति कुल व गोत्र के कारण नीचा-ऊँचा नहीं है अथवा तिरस्कार-पात्र नहीं है और अस्पृश्य भी नहीं है। अतः इस सूत्र का नाम अस्पृश्यता निवारण सूत्र भी रखें तो भी उचित ही है] (३०३) एगमेगे खलु जीवे अईअद्धाए असइ उच्चागोए, असई नीयागोए। xxx नो होणे, नो अइरित्ते, इति संखाए के गोयावाई के माणावाई ? कसि वा एगे गिज्मे ? तम्हा पंडिए नो हरिसे नों कुज्मे। भूएहिं जाण पडिलेह सायं समिए एयागुपस्सी । [आचाराग सूत्र, द्वि० अध्ययन, उद्देशक तृ०, सूत्र १-२-३]
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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