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: २२ : भिक्षु-सूत्र
(२६६) जे ज्ञातपुत्र-मवान् महावर के प्रवचनों पर श्रद्धा रखकर छत् काय के जीवों को अपनी आत्मा के समान मानता है, जो अहिंसा ग्रादि पाँच महावतों का पूर्ण रूप से पालन करता है, जो पाँच ग्रालयों का संवरण शार्थात् निरन मरता है, वहीं भित्तु है ।
(२७ ) जो सदा कच, गान, माया और लोग इन चार ब.पाय का परित्याग करता है, जो ज्ञानः पुत्रों के वचनों का दृढविश्वासी रहता है, जो. चाँदो, सेना ग्रादि किसी भी प्रकार का परिग्रह नहीं रखता, जो न हो के साथ कोई भी सांसारिक रनेह-सम्बन्ध नहीं जोड़ता, वहीं गिनु है ।
(२७१) जो सम्यग्दर्शी है, जो कर्तव्य-दिमृद नहीं है, जो ज्ञान, तप : और संयम का वृद्ध श्रद्धाल है, जो मन, वचन र शरीर को पाप-पथ पर जाने से रे.क रखता है, जो तप के द्वारा पूर्व-वृत पाप-कर्मों को ना व.र देता है, वही मितु है।