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________________ आ वन्ने मुद्दामओ विशे पण हवे पछी लखवानी कल्पना करी हाल तो मूकी छांडी छे. 'आ उपरांत केटलांक वचनोनो आशय समजाववा सारु थोडं विवेचन करचु जरूरी छे. जेमके दाखला तरीके-धर्मसूत्रमा आवेली चोथी गाथानो मर्थ आ प्रमाणे छ "जरा अने मरणना वेगथी धोधवंध घहेता प्रवाहमा तणाता प्राणीओने माटे धर्म ज बेटरूप छ अने धर्म ज शरणरूप छे." ____ मानो अर्थ कोई एम न समजी बेसे के धर्म कोई पण देहधारीनां जरा अने मरणने अटकावी शके छे. जेम जन्मवू आपणे वश नथी तेम जरा अने मरण पण तमामने माटे स्वाभाधिक छे. मोटा मोटा ज्ञानीओ, संतो, तीर्थंकरो अने चक्रवर्तीओ खरा अर्थमां धर्मावलंबी थई गया पण तेमो घरडा थतां अटक्या नहीं तेम मरतां पण अटक्या नहीं. मात्र तेमर्नु धर्मावलंबन तेओने शांतिथी, संतोपथी अने अविषमभावे जीवन जीरवामां खप लागतुं अने धर्मावलंबननो खरो अर्थ पण प ज छे जे विकार स्वाभाविक छ तेने कोई अटकावी शके ज नही मात्र ते विकारोथता आपणने कदाच अज्ञानताथी अशांति असंतोप उपजे तो धर्माचलंबनथी तेमर्नु समाधान थाय छे. आ भर्थ 'धर्म ज शरणरूप १८ ],
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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