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लोकतत्त्व-सूत्र
१३३ ।
( २४१ )
पाच समिति और तीन गुप्ति इस प्रकार आठ प्रवचन-माता कहलाती हैं।
( २४२ )
ईर्या, भाषा, पणा, चादान-निक्षेप और उच्चार ये पाँच समितियाँ हैं । तथा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति – ये तीन गुप्तियाँ हैं । इस प्रकार दोनों मिलकर ग्राट प्रवचन - माताएँ है ।
( २४३ )
पाँच समिति या चारित्र की दया यादि प्रवृत्तियों मे काम याती हैं और तीन मिया सब प्रकार के अशुभ व्यापारो से निवृत्त हंने में सहायक होती है ।
( २४४ )
जो विद्वान् मुनि उक्त आठ प्रवचन-माताओ का च्छी तरह चाचरण करता है, वह शीघ्र हो अखिल संसार से सदा के लिए, मुक्त हो जाता है।