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________________ : १८: ओत्म-सूत्र (२११) आत्मा हो नरक की वैनरणो नदी तथा कूट शाल्मली वृक्ष है । आत्मा ही स्वर्ग की कामदुधा घेनु तथा नन्दनवन है। (२१२) श्रात्मा ही अपने दु खा और सुखो का कर्ता तथा भक्ता है। अच्छे मार्ग पर चलने वाला ग्रात्मा मित्र है, और बुरे मार्ग पर चलने वाला प्रारमा शत्रु है। (२१३) अपने-यापको हो दमन करना चाहिये । वास्तव में यहो कठिन है । अपने-श्रापको दमन करनेवाला इस लोक तथा परलोक मे सुखों होता है। (२१४) दूसरे लोग मेरा वध बन्धनादि से दमन करे, इसकी अपेक्षा तो मै सयम और तप के द्वारा अपने-आप हो अपना (यात्मा का) दमन करू', यह अच्छा है।
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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