________________
११६
महावीर वाणी
( २०२ )
जे ममाइश्रम जहाइ, से जहाइ ममाइश्रं । से हु दिट्ठभए मुणी, जस्स नत्थि ममाइअं ॥ ५ ॥
[ श्राचा० १ ० ० २ उ० ६ सू० ६६ ] ( २०३ )
जहा कुम्मे अंगाई, सए देहे समाहरे | एवं पावाइ मेहावी, अज्मप्पेण समाहरे ॥ ६ ॥
[ सूत्र० श्रु० १०८ गा० १६ ] (208)
मासे मासे गवं दए । दिन्तस्स वि किंचण ॥ ७ ॥ [ उत्तरा० श्र० ६ गा० ४० ] ( २०५ )
जो सहस्सं सहस्साणं, तस्स वि संजमो सेयो
नागणस्स सव्वस्स पगासरणाय, अन्नाणमोहस्स विवज्जणाए । रागस्स दोसरस य संखए,
एगन्तसोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥ ८ ॥ ( २०६ )
तरसेस मग्गो मग्गो गुरुविद्धसेवा,
विवज्जणा वालजणस्स दूरा ।
य, मुत्तत्थसंचिन्तया धिई य ॥ ६ ॥
सम्भाय एगन्तनिसेवा