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पण्डित-सूत्र
(१९८) पण्डिन पुत्र को मंमार-भ्रमण के कारणरूप दुष्पर्म-पाशों ग भली भानि विचार कर अपने आप स्वतन्त्रल्प ने सत्य की ग्बोज वरना चाहिये और सब जीवों पर मैत्रीभाव रखना चाहिये।
(१६६) जे मनुष्य.मुन्दर और प्रिय भोगा को पाकर भो पोठ फेर लेता है, नव प्रकार से साधीन भंगा का परित्याग कर देता है, यही मच्चा त्यागी कहलाता है।
(२००) जो मनुष्य किसी परतन्त्रना के कारण वस्त्र, गन्ध, अलकार, को अंर शयन याद का उपभंग नहीं कर पाता, वह सच्चा त्यागी नहीं कहलाता ।
(२०१) जो बुद्धिमान मनुष्य मोहनिद्रा में सोते रहने वाले मनुष्यों के बीच रस र मगार के छटे-बटे सभी प्राणियों को अपनी आत्मा के समान देवता है, इममहान् विश्व का निरक्षण करता है, सर्वदाअप्रमत्तभाव से सयमाचरण में रत रहता है वही मोक्षगति का सच्चा अधिकारी है।