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बाल-सूत्र
१११ (१२) जो मनुष्य अपने जीवन को अनियंत्रित ( उच्छ सन ) रखने के कारण समाधि योग से भ्रष्ट हो जाते है वे काम-भोगो मे श्रासरत होकर अन्त में शरयोनि में उत्पन्न होते हैं।
(१९३) संसार के सब अविहान् (मूर्ख) पुरुप दुःख भोगने वाले हैं। मूढ प्राणो धनत संसार में चार बार लुप्त होते रहते है-जन्मते और मरते रहते है।
(18) मूल जीवों का संसार में बार बार अकाम-मरण हुआ करता है, परन्तु पंदित पुरषों का सझाम मरण एक बार ही होता हैउनका पुनर्जन्म नहीं होता।
(१५) मूसं मनुष्य को भूसता तो देखो, जो धर्म छोड़कर, अधर्म को स्वीकार पर अधार्मिक हो जाता है, और अन्त में नरकगति को प्राप्त होता है।
(१६) सस्य धर्म के अनुगामी धीर पुरुष को धीरता देखो, जो अधर्म का परित्याग कर धार्मिक हो जाता है, और अन्त में देवजोक में उत्पन्न होता है।