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________________ : १४ : काम - सूत्र ( १५२) काम-भोग शल्यरूप हैं, विरूप हैं और विषधर के समान हैं । काम-भोगों की लालसा रखने वाले प्राणी उन्हें प्राप्त किए विना ही अतृप्त दशा में एक दिन दुर्गति को प्राप्त हो जाते हैं । ( १५३ ) गीत सब विज्ञापरूप हैं, नाट्य सब विडम्बनारूप हैं, श्राभरण सब भाररूप हैं । श्रधिक क्या; संसार के जो भी काम-भोग हैं, 3 सब-के-सब दुःखावह हैं। ( १५४ ) काम-भोग क्षणमात्र सुख देनेवाले हैं और चिरकाल तक दुख प्रत्यधिक दुःख-हो-टु ख देने वाले । उनमें सुख बहुत थोदा है, है । मोक्ष सुख के ये भयंकर शत्रु हैं, अनयों की खान हैं। ( १५५ ) जैसे किंपाक फलों का परिणाम अच्छा नहीं होता, उसी भोगों का परिणाम भी अच्छा नहीं होता 1 प्रकार भोगे हुए
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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