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महावीर-वाणी
रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं,
कुतो सुह होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेस-दुक्ख, निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥जा
(१३७) एमेव स्वम्मि गो पोस,
उवेइ दुक्खोहपरपरायो । पद्धचित्तो य चिणाइ कम्म,
जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥८॥
रूवे विरत्तो मणुभो विसोगो,
एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पए भवमसे वि सन्तो, जलेण वा पोखरिणीपलासं l
[उत्तरा० अ० ३२ गा० ३२-३४]
(१३६) एविन्दियत्या य मणरस अत्था,
दुक्खस्स हेउ भणुयस्स रागिणों । ते चेव थोव पि कयाइ दुक्ख, न वीयरागस्स करेन्ति किचि ॥१८॥
[उत्तरा० अ० ३२ गा० १००]