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________________ पल्लीवाल जाति इस जाति की उत्पत्ति का मूल स्थान पाली शहर है, जो मारवाड़ प्रांत के अन्तर व्यापार का एक मुख्य नगर था, पर इस जाति में दो तरह के पल्लीवाल हैं। 1. वैश्य पल्लीवाल, 2. ब्राह्मण पल्लीवाल और इस प्रकार नगर के नाम से और भी अनेक जाति हुई थीं, जैसे श्रीमाल नगर से श्रीमाल जाति, खंडेला शहर से खंडेलवाल, महेश्वरी नगरी से महेश्वरी जाति, उपकेशपुर से उपकेश जाति, कोरंट नगर से कोरटवाल जाति और सिरोही नगर से सिरोहिया जाति इत्यादि नगरों के नामों से अनके जातियाँ उत्पन्न हई थी। इसी प्रकार पाली नगर से पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति हुई है। वैश्यों के साथ ब्राह्मणों का भी संबंध था, कारण ब्राह्मणों की आजीविका वैश्यों पर ही थी, अतः जहाँ यजमान जाते हैं वहाँ उनके गुरु ब्राह्मण भी जाया करते हैं। जैसे श्रीमाल नगर से वैश्य लोग श्रीमाल नगर का त्याग करके उपकेशपुर में जा बसे तो श्रीमाल नगर के ब्राह्मण भी उनके पीछे पीछे चले आये। अतः श्रीमाल नगर से आये हए वैश्य और ब्राह्मण, श्रीमाल वैश्य और श्रीमाल ब्राह्मण कहलाये। इसी प्रकार पाली के वैश्य और ब्राह्मण पाली के नाम पर पल्लीवाल वैश्य और पल्लीवाल ब्राह्मण कहलाये। जिस समय का मैं, हाल लिख रहा हँ वह जमाना क्रिया कांड का था और ब्राह्मण लोगों ने ऐसे विधि विधान रच डाले थे कि थोड़ी थोड़ी बातों में क्रिया कांड की आवश्यकता रहती थी और वह क्रिया कांड भी जिसके यजमान होते थे वे ब्राह्मण ही करवाया करते थे। उसमें दूसरा ब्राह्मण हस्तक्षेप नहीं कर सकता था, अतः वे ब्राह्मण अपनी मनमानी करने में स्वतंत्र एवं निरंकुश थे। एक वंशावली में लिखा हुआ मिलता है कि पल्लीवाल वैश्य एक वर्ष में पल्लीवाल ब्राह्मणों को 1400 लीकी और 1400 टके दिया करते थे तथा श्रीमाल वैश्यों को भी इसी प्रकार टैक्स देना पड़ता था। पंचशतीशाषोडशाधिका अर्थात 516 टका लाग दाया के देने पड़ते हैं। भूदेवों ने ज्यों-ज्यों लाग दाया रुपी टेक्स बढाया त्यों-त्यों यजमानों की अरूचि बढ़ति गई। यही कारण था कि उपकेशपुर के मंत्री बहड ने म्लेच्छों की सेना लाकर श्रीमाली ब्राह्मणों से पीछा छुड़वाया। इतना ही क्यों बल्कि दूसरे ब्राह्मणों का भी जोर जुल्म बहुत कम पड़ गया। क्योंकि ब्राह्मण लोग भी समझ गये कि अधिक करने से श्रीमाली ब्राह्मण की भांति यजमानों का संबंध टूट जायेगा जो कि उन पर ब्राह्मणों की आजीविका का आधार था, अतः पल्लीवालादि ब्राह्मणों का उनके यजमानों के -श्री पल्लीवाल जैन इतिहास -11
SR No.007799
Book TitlePalliwal Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi, Bhushan Shah
PublisherMission Jainattva Jagaran
Publication Year2017
Total Pages42
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size15 MB
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