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________________ श्रीअध्यात्मवीरजिनगहुली कविबहादुरपंडितश्रीदीपविजयरचित ॥ श्रीअध्यात्मवीरजिनगहुली ॥ (विण मवास्यो रे विठल वासं तु मने तथा भवि तुमे वंदो रे शंखेश्वर जिनराय। ए देशी) अमृत सरखी रे सुणीइ वीरनी वाणी, अति मन हरखी रे प्रणमो केवल ज्ञानी।(आंकणी।) जोजन गामीनी जिननी वाणी, पांत्रीश गुणथी भाखे। मरण पुन्य अपूरव जेहनां, प्रभु वाणी रस चाखे॥१॥ अमृत । अति । जेहमां द्रव्य पदारथ रचना, धर्माधर्म आकाश | पुद्गल काल अने वली चेतन, नित्यानित्य प्रकाश ॥ २॥ अमृत。। अति。। गुण सामान्य विशेष विशेषे, दोय मली गुण एकत्रीश तस चउभंगी च्यार निक्षेपे, भाखे श्री जगदीश ॥ अमृत । अति । ने पर्याय प्रकाशे, अस्ति नास्ति विचार द्रव्य गुण नय सातेथी मालकोशमां, वरसे छे जलधार ॥४॥ अमृत । अति । भील दृष्टांते खेचर भूचर, सुरपति नरपति नारी। निज निज भाषाई सहु समजे, वाणीनी बलिहारी ॥५॥ अमृत० । अति。। नंदीवर्धननी पटराणी, चउ मंगल प्रभु आगे । पूरे स्वस्तिक मुगता फलनो, चढवा सिवगिरी पाजे ॥६॥ अमृत。। अति。। चउ अनुयोगी आतम दरसि, प्रभु वाणी रस पीजे। दीपविजय कहे प्रभुता प्रगटे, प्रभुनें प्रभुता दीजे ॥७॥ अमृत。। अति。। ॥इति श्रीअध्यात्मवीरजिनगहुली ॥ ९१
SR No.007792
Book TitleShrutdeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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