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________________ ८६ श्रुतदीप- १ करे छें अनें भोगवें छें। तेस्यू ववहारनयै आत्मा करता भोगता छें ३ हिवें आत्मानुं स्वरूप लिखें छें आत्मा त्रिण प्रकारें । ते आत्मानुं स्वरूप सम्यग्दृष्टियै धारवो । जिम थिरता थाइं तें लिखें छें-ते त्रिण प्रकारें केहा? एक बहिरात्मा एक अंतरात्मा एक परमात्मा माहिं छैं। बहिरात्मा ते केहने कहिइं? जे शरीर, कुटुंब, माल, धन, परिवार, घर, नगर, देश, राग, द्वेष, मिथ्यात्व; में मार्यो, में जीवाड्यो, में सुखी कर्यो, में दुखी कर्यो, संसै, विमोह प्रमुख ए सरवनिं निजस्वभाव जांणै तेहनें बहिरात्मा १ तेहनें बाहिरदृष्टि हुई, ते प्रथम मिथ्यात्व गुणठा हुवें । हिवें अंतरात्मानौ स्वरूप कहै हैं- प्रथम कर्म बांधानओ कारण जाणै ति लिखै छें। मिथ्यात्व ५, अविरति १२, कषाय २५, योग १५, ए सत्तावन हेतूइं जीव कर्म बांध। ते वलतां भोगवैं ते भोगवतां मोहनी(य) कर्मनें जोरें दुःख पांमैं, तिवारें इंम जांणें जे माहरो स्वभाव नही, किसी वस्तु जाइ तथा मरण आवैं तिवारैं इम जाणें जे माहरा प्रदेशथी का जातो नथी हूं सर्व वस्तुथी भिन्न छु। किवारेंक लाभ पामें तिवारि इंम जाणें जे वस्तु असास्वति छें तो तेह उपरि हर्ष स्यो धारवो? तथा कांई जायें तिवारैं इंम जाए वस्तुथी संबंध टल्यओ। वेदनादि कष्ट आव्ये समभाव राखें। परभाव पुद्गलादिक आत्माथी भिन्न जांण, छांडवानी खप करें, परमात्मानी वांछा करें, ध्यान - सिजाय विशेष करें। भावना खिण- खिण भावि संवर आदरें । निजस्वभाव जे ज्ञान तेहिनें विषे इम मगन रहिं ते अंतरात्मा। ज्ञान करवा पर (मा) त्मानु योग्य चोथा गुणठाणाथी बारमा गुणठाणा सुधी अंतरात्मापणो छें. तें ओलखें तिवारें परमात्मापणो पामें। परमात्मानो स्वरूप लिखीयै छई - साक्षात् पोतानुं स्वरूप देखें, कर्मनी उपाधिरहित ते परमात्मा तेरमें चौदमें गुणठाणें तथा सिद्ध जाणवो. ए परमात्मा ध्यान करवा योग्य अंतरात्मानें ध्याववा योग्य छ । १ १. श्रीरस्तु श्रेय श्रेयः सर्वसंख्या श्लोक ५२ जांणवा मंगलं इति वाचनार्थं
SR No.007792
Book TitleShrutdeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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