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________________ अज्ञातकर्तृक ॥आत्मस्वरूपविचार॥ (आत्मानी आत्मता) ॥ॐ॥ अथ आत्मानी आत्मता किंचित् लिख्यते। असंख्यातप्रदेशी, अनंतज्ञानमयी, अनंतदर्शनमयी, अनंतचारित्रमयी, अनंतवीर्यमयी, अनंतदानमयी, अनंतलाभमयी, अनंतभोगमयी, अनंतउपभोगमयी, अरूपी, अखंड, अगुरुलघुमयी, अक्षय, अज, अमर, असरीरी, अत्येंद्री, अनाहारी, अलेसी, अनुपाधी, अरागी, अद्वेषी, अकोही, अमानी, अमायी, अलोभी, अक्लेशी, मिथ्यातरहित, अविरतिरहित, कषायरहित, योगरहित, अयोगी, सिद्धस्वरूपी, संसाररहित, स्वआतमसत्तावंत, परसत्तारहित, परभावनो अकर्ता, स्वभावनो कर्ता, परभावनो अभोक्ता, स्वभावनो भोक्ता, ज्ञायक, वेत्ता, स्वक्षेत्रअवगाही, परक्षेत्र स्वपणे अनवगाही, लोकपरमाणअवगाहनावंत, धर्मास्तिकायथी भिन्न, अधर्मास्तिकायथी भिन्न, आकाशथी भिन्न, पुद्गलथी भिन्न, परकालथी भिन्न, स्वद्रव्यवंत, स्वक्षेत्रवंत, स्वकालवंत, स्वभाववंत, अवस्थानपणिं स्वगुणथी अभिन्न, कार्यभेदें भिन्न, स्वरूपी सत्तावंत, अवस्थितसत्तावंत, परिणमनसत्तावंत, द्रव्यास्तिकपणि नित्य, पयार्यास्तिकें नित्यानित्य, द्रव्यपणिं एकगण, पर्यायपणे अनेक, अनंता द्रव्यास्तिक धर्म; अनंता पर्यायास्तिक धर्म एहवी स्वसंपदामयी चेतनालक्षणे लक्षित, स्वसंपदाए पूर्ण, परसंगें परिणम्यो संसार करें, स्वज्ञानदर्शनचारित्रं परिणम्यो सिद्धता करें, एहवा आत्म द्रव्यनी ओलखांण अनंतनये अनंत नीखेपें थायें। ए रीते जे आत्मा आत्मानी परतीत करें एहवी परतीतवंतनैं जैनमारगी मारगमां गणें छई। एहवो आत्मा जैन मारगें अनेकांतमें कह्यो छई। ए रीते परतीत ते सम्यग्दर्शन, ए रीतें जानें ज्ञान, एमाहिं रमवू ते चारित्र। अस्तित्वं १ वस्तुत्वं २ द्रव्यत्वं ३ प्रमेयत्वं ४ सत्त्वं ५ अगुरूलघुत्वं ६ ए ६ द्रव्यास्तिकना सामान्यस्वभाव जाणवा। नित्यस्वभाव, अनित्यस्वभाव, एकस्वभाव, अनेकस्वभाव, सत्स्वभाव, असत्स्वभाव, वक्तव्यस्वभाव, अवक्तव्यस्वभाव, भेदस्वभाव, अभेदस्वभाव, परमस्वभाव ए इग्यार पिण सामान्यस्वभाव जाणवा। एहने आवरण नथी, अनें परानुयायीपणो पिण नथी। विशेष स्वभावना नाम-सप्रदेशस्वभाव, अप्रदेशस्वभाव, चेतनस्वभाव, अचेतनस्वभाव, मूर्तस्वभाव, अमूर्तस्वभाव, कर्तृत्वस्वभाव, भोक्तृत्वस्वभाव, पारिणामिकत्वस्वभाव ए विशेषस्वभाव। एहनी परिणतिने आवरण नथी पिण परानुयायी थाय एहनो प्रवर्तन गुणानुयायी छ। ते बिगडें माटें ए बिगड़ें अने गुण समरे ते समरें तथा ग्राहकता व्यापक[ता] आश्रयतादिक विशेषस्वभाव अनेक छई। धर्मास्तिकायना गुण ४। मुख्य अरूपी १ अचेतन २ अक्रिय ३ अनि [गति]सहाय ४। अधर्मास्तिकायना गुण ४। मुख्य अरूपी १ अचेतन २ अक्रिय ३ अनि स्थितिसहाय ४। आकाशास्तिकायना गुण ४- मुख्य अरूपी १ अचेतन २ अक्रिय ३ अवगाहनादान ४। पुद्गलास्तिकायना गुण ४ मुख्य रूपी १ अचेतन २ सक्रिय ३ पूरणगलन ४। पर्यायास्तिक नयना भेद ६। १ द्रव्यपर्याय, भव(व्य)त्व, सिद्धत्व, अभव्यत्व, कारणत्व, कार्यत्व। २ द्रव्यव्यंजनपर्याय असंख्येयप्रदेशत्व। ३ गुणपर्याय गुणेतर भेद क्षात्यादि भेद ४ गुणव्यंजनपर्याय एक गुणना अनंता पर्याय जिम केवलज्ञानना पर्याय भासन, अवलोकन, परिवेदन, सकलवेत्तृत्वादिक इम सर्वना पर्याय जाणवा। ५ स्वभावपर्याय षड्गुणहानिवृद्धि। ६ विभावपर्याय नरकनरादि। पर्यायास्तिक सामान्य परिणामिक अखंड अलेप असहाई सक्रियता करे , कोइ भोगवें छे कोइ इम करतां जे परिणांमें बाधइं छे ते परिणांमैं भोगवतो नथी ए अपेक्षानी भावना छे १ करतो नथी अनैं भोगतो नथी ते स्यं जे निश्चै नमैं आत्मा अबंध , २
SR No.007792
Book TitleShrutdeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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