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________________ संपादकीय जीवों को मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति करने में प्रथम सोपान सम्यग्दर्शन है। तत्त्वार्थसूत्रकार श्री उमास्वातीजी ने सम्यग्दर्शन प्राप्ति के दो मार्ग बताये है। १ निसर्ग से अर्थात् स्वभाव से और २ अधिगम से मतलब परोपदेश से। अज्ञातकर्ता द्वारा रचित आत्मोपदेशमाला प्रकरण में आत्मा के हित हेतु उपदेशों की माला वर्णित है। प्रस्तुत कृति में आत्मा धर्म में प्रवृत्त हो इस आशय से स्कन्दक, चिलातीपुत्र, सनत्कुमार, करकंडू, नमिराजा आदि दृष्टांतों के द्वारा प्रतिबोध किया है। इसके अलावा लोक में स्थित सूक्ष्म से लेकर स्थूल तक सभी जीवों का वर्णन तथा उन उन भव में उत्पन्न होनेवाले दुःखों का सुसंगत वर्णन भी है। इसी विषय में ग्रंथकार कहते है कि हे जीव! उस तरह से पठन, श्रवण, आचरण, ध्यान करो कि जिससे तुम धर्मरूपी मार्ग से भ्रष्ट न हो। आत्मबोध के लिए उपयुक्त ऐसी महत्त्वपूर्ण कृति आजतक अप्रगट है। प्राकृत भाषा में निबद्ध इस कृति में कुल १८१ गाथाएं है जिसमें ९८ से १५० याने कुल ५३ गाथाएं अनुपलब्ध है। इसके बोधवचन अत्यंत प्रेरणादायक है अतः हिंदी अनुवाद भी साथ में संलग्न है। हस्तप्रत माहिती - लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिर. अहमदाबाद द्वारा प्राप्त एकमात्र हस्तप्रत के आधार पर इस कृति का संपादन किया है। प्राचीन देवनागरी में लिखित कागज पर लिखी हुई यह प्रत सुस्पष्ट और सुवाच्य है। इसके कुल ४ पत्र है जिसमें से तिसरा पत्र अनुपलब्ध है। अतः ९८ से १५० याने कुल ५३ गाथाएं अनुपलब्ध है । हरेक पत्र में १५ पंक्तियां है तथा प्रत्येक पंक्ति में ६४ अक्षर है। प्रत में षट्कोन आकार की मध्यफुल्लिका है जिसे लाल रंग के बिंदी से सुशोभित किया है। लेखन शैली से इस प्रत का लेखनकाल १५ सदी लगता है। प्रत में पडिमात्रा का उपयोग किया है तथा टिप्पणी दो छोटी लाइन करके नजदीकी जगह पर दिया है। गाथा पूर्ण होने पर एक दण्ड का उपयोग भी दिखता है। प्रत के लेखक प्राकृत भाषा के जानकार है, लेखन की अशुद्धियां नहीं के बराबर है। प्रत में पदच्छेद के चिह्न भी चिह्नित है। - संपादक
SR No.007792
Book TitleShrutdeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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