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प्राकृत व्याकरणे
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(सूत्र) म्लेर्वापव्वायौ ।। १८।। (वृत्ति) म्लायतेर्वा पव्वाय इत्यादेशौ वा भवतः। वाइ। पव्वायइ। मिलाइ। (अनु.) म्लायति (म्लै) ला वा आणि पव्वाय असे आदेश विकल्पाने होतात.
उदा. वाइ, पव्वायइ. (विकल्पपक्षी :-) मिलाइ.
(सूत्र) निर्मो निम्माणनिम्मवौ ।। १९।। (वृत्ति) निपूर्वस्य मिमीतेरेतावादेशौ भवतः। निम्माणइ। निम्मवइ। (अनु.) निर् (हा उपसर्ग) पूर्वी असणाऱ्या मिमीति (मा) ला निम्माण आणि
निम्मव हे आदेश होतात. उदा. निम्माणइ, निम्मवइ.
(सूत्र) क्षेर्णिज्झरो वा ।। २०।। (वृत्ति) क्षयतेर्णिज्झर इत्यादेशो वा भवति। णिज्झरह। पक्ष। झिज्जड़।
क्षयति (क्षि) ला णिज्झर असा आदेश विकल्पाने होतो. उदा. णिज्झरइ. (विकल्प-) पक्षी :- झिज्जइ.
(सूत्र) छदेणैर्गुम-नूम-सन्नुम-ढक्कौम्वाल-पव्वालाः ।। २१॥ (वृत्ति) छदेर्ण्यन्तस्य एते षडादेशा वा भवन्ति। णुमइ। नूमइ। णत्वे नूमइ।
सन्नुमइ। ढक्कइ। ओम्वालइ। पव्वालइ। छायइ। (अनु.) प्रयोजक प्रत्यय अन्ती असणाऱ्या छदि (छद्) ला (णुम, नूम, सन्नुम,
ढक्क, ओम्वाल आणि पव्वाल असे) हे सहा आदेश विकल्पाने होतात. उदा. णुमइ; नूमइ; (नूम मधील न चा) ण झाला असता णूमइ ; सन्नुमइ...पव्वालइ. (विकल्प पक्षी :-) छायइ.
(सूत्र) निविपत्योर्णिहोडः ।। २२।। (वृत्ति) निवृग: पतेश्च ण्यन्तस्य णिहोड इत्यादेशो वा भवति। णिहोडइ।
पक्षे। निवारेइ। पाडे। (अनु.) प्रयोजक प्रत्यय अन्ती असणाऱ्या निवृ (निवृगः) आणि पत् (पति) या