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________________ प्राकृत व्याकरणे १८३ (सूत्र) वेव्व च आमन्त्रणे ।। १९४।। (वृत्ति) वेव्व वेव्वे च आमन्त्रणे प्रयोक्तव्ये। वेव्व' गोले। वेव्वे मुरन्दले वहसि पाणि। (अनु.) वेव्व आणि वेव्वे (ही अव्यये) आमंत्रण करताना वापरावीत. उदा. वेव्व...पाणिअं. (सूत्र) मामि हला हले सख्या वा ।। १९५।। (वृत्ति) एते सख्या आमन्त्रणे वा प्रयोक्तव्याः । मामि सरिसक्खराण३ वि। पणवह माणस्स हला। हले हयासस्स। पक्षे। सहि एरिसि च्चिअ६ गई। (अनु.) मामि, हला आणि हले हे शब्द सखीला हाक मारताना विकल्पाने वापरावेत. उदा. मामि...हयासस्स. (विकल्प-) पक्षी :- सहि...गई. (सूत्र) दे संमुखीकरणे च ।। १९६।। (वृत्ति) संमुखीकरणे सख्या आमन्त्रणे च दे इति प्रयोक्तव्यम्। दे पसिअ° ताव सुन्दरि। दे आ पसिअ निअत्तसु। (अनु.) (कोणाचा) तरी ध्यान आकृष्ट करण्यासाठी आणि मैत्रीणीला बोलावण्यासाठी दे (असा अव्यय) वापरावे. उदा. दे पसिअ...निअत्तसु. (सूत्र) हुं दान-पृच्छा-निवारणे ।। १९७।। (वृत्ति) हुं इति दानादिषु प्रयुज्यते। दाने। हुं गेण्ह अप्पणो च्चि। पृच्छायाम्। हं साहसु सब्भावं। निवारणे। हं१० निल्लज्ज११ समोसर। १ (वेव्व) गोले। ३ (मामि) सदृशाक्षराणां अपि। ५ (हले) हताशस्य। ७ (दे) प्रसीद तावत् सुन्दरि। ९ (९) गृहाण स्वयं (च्चिअ)। ११ (१) निर्लज्ज समपसर। २ (वेव्वे) मुरन्दले वहसि पानीयम्। ४ प्रणमत मानस्य (हला)। ६ सखि ईदृशी (च्चिअ) गतिः। ८ (दे) आ प्रसीद निवर्तस्व। १० (हुं) कथय सद्भावम्। A-Proof
SR No.007791
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages594
LanguageSanskrit, Marathi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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