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________________ गुजराती पद्यकृति ६७ तथा तेहिज वस्तुनइं विषई समकालई उभय धर्म पिण छइ। एक सामान्य बीजो विशेष। तृतीयो भङ्गः।(३) । तथा तेहिज वस्तुनइं विषइं अवस्तु [आवक्तव्य धर्म पिण छइ। एक कोईइ करी कहिवा योग्य पिण नथी। चतुर्थो भङ्गः।(४) तथा अनुक्रमें एकाकी सामान्य कल्पनाइ ज करीनइ वस्तुनइ कहिवानइं अवक्तव्य छ।। इति पञ्चमो भङ्गः।(५) तथा एहज अनुक्रमइ एकाकी विशेष कल्पनाइ ज करीनइ वस्तु कहिवानइं अवक्तव्य छइ। षष्ठो भङ्गः।(६) तथा तेहिज वस्तु युगपत् कहितां समकालइ सामान्यविशेषज्ञ करी कहिवाने अवक्तव्य छइ। इति सप्तमो भङ्गः।(७)इति नैगमः। वस्तुनि कथञ्चित्प्रकारेण सामान्यद्रव्यधर्मत्वमस्तीति प्रथमभङ्गार्थः। (१) तथा तस्मिन्नेव वस्तुनि कथञ्चित्प्रकारेण विशेषधर्मः पर्यायोऽपि स्यादिति द्वितीयः।(२) तथा तस्मिन्नेव वस्तुनि समकाले सामान्यविशेषावपि स्यातामिति तृतीयः।(३) तथा तस्मिन्नेव वस्तुनि अवक्तव्यधर्मत्वं परमाणुरूपमस्तीति चतुर्थः।(४) तथाऽनुक्रमेणैकया सामान्यकल्पनया वस्तुस्वरूपं कथंपि(थयि)तुमशक्यमतोऽवक्तव्यमिति पञ्चमः।(५) तथाऽनुक्रमेणैकया विशेषकल्पनया वस्तुस्वरूपं कथयितुमशक्यत्वादवक्तव्यमिति षष्ठः।(६) तथा वस्तु युगपत् समकालं सामान्यविशेषत्वेन कथयितुमशक्यत्वादवक्तव्यमिति सप्तमः।(७) हवइं दृष्टांतइं करी नैगमनय देखाडइं छइं। जिम कोइ एक पुरुष किणहि पुरुषई पूछिउं—अहो! पुरुष! तुं किहां वसई छइं? तेणइं का हुं लोकइमांहि वसुं छु। इम कहिहुं तइ नैगमनयवादी सामान्यविशेषादिक करी पूछइ छइ–लोकमाहिं तुं केहइं लोकइ वसइं उर्द्धलोकइ अथवा अधोलोकइ अथवा तिर्यक् लोकइ? तिवारइं पेलें कह्यु—तिर्यक् लोकइ वस्तुं। तिवारइ नैगमनयवादी कहइ छइं—तिर्यक् लोकमांहि असंख्याता द्वीप असंख्याता समुद्र छइं तुं केहइ द्वीपइ वसइ? तिवारइ ते कहइ हुं जंबूद्वीपइं वसुं। तिवारइं वली नैगमवादी पूछइं—जंबूद्वीपमाहिं भरतादिक क्षेत्र अनेक छइ तुं केहइ क्षेत्रई वसें? तिवारइ ते पुरुष कहइ हुं भरतक्षेत्रई वसुं। तिवारें वली नैगमवादी पूछइ— अहो! पुरुष! भरतक्षेत्रमांहि अनेक ग्राम, आगर, नगर, खेड,कब्बड, मडंब, द्रोणमुख, पट्टण, आश्रम, संनिवेष, राजधानी छइं तिण कारणइं किहां वसें? पेलें कयुं हुं पाडलीपुरे वसुं। तिवारें पृच्छक बोल्यो—पाडलीपुरे अनेक ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्रनां अनेक शतसहस्र, लाख घर छइं तुं किहां वसइं? तिवारइं ते कहइ हुं देवदत्तने घरे वसुं। तिवारें वली ते पूछइ— अहो! पुरुष! देवदत्तने घरि अनेक ओरडा, साल, पडसाल, चित्रसाला, सभा, गवाक्ष, आव आवास छइ तं किहां वसइं? तिवारइं ते कहें हं उरडई वसं। इम जे एकभाव सामान्यविशेषाधिक गमई बोलीइं तिहां नैगमनय जाणवो। हवें ए नैगमनो विशेष देखाडई छइ। लोकमध्ये वसुं ए अशुद्ध नैगम प्रथम बीजी वार पूछउँ तिवारें तिर्यक् लोक माहिं वसुं छु। ए पहिलाथी कांइ एक शुद्ध छई। पहिलामाहिं तो त्रिलोक भासतां हतां ए माहिंतो एक ज लोक भासे
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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