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________________ नयामतम-२ [टबार्थ म.] [मु.] इंम गोत्वादिक मानवा रे, पणि सामान्य विशेष। स्वजातीय विजातीइं रे, वृत्ति व्यावृत्ति विशेष॥ चतुर.॥५.५॥(५२) जिम सत् सामान्य कहिउं तिम गोत्वादिक पणि जाणवां। पणि एतलो भेद-सत्ता ते महासामान्य कहीइं अनि गोत्वादिक ते सामान्य-विशेष कहीइं। विशेष ते परथकीं व्यावृत्ति बुद्धिनुं कारण। ते लक्षण आगली गाथाइं कहेंसें। सत् ए महासामान्य कहीइं द्रव्यादिक त्रिण्येने विषं व्यापक माटें। अने गोत्वादिक ते सामान्य-विशेष कहीइं। जे माटि सर्व गोने विषई अनुगत बुद्धिना कारण माटें सामान्य कहीइं। अनिं अस्वादिक थकी निवर्तन बुद्धि माटें विशेष कहीइं। अनि सत्ता ते कोईथी व्यावर्तक नथी इति भावः। तिहां हेतु कहें छई। गो तिं स्वजातीय अपर सर्व गोपिंड, विजातीय अस्वादिक तेहनें विर्षे अनुक्रमिं वर्तवं अनिं निवर्तवू थाई छे ते माटें॥५.५॥(५२) तुल्य संस्थानादिक छतें रे, होइ व्यावृत्ति बुद्धि। तस कारण परमाणुइं रे, वरती विशेषनी शुद्धि॥ चतुर.॥५.६॥(५३) [टबार्थ हवें विशेष पदार्थ- लक्षण कहें छई। संस्थान, गुण, क्रिया, एकदेश, अतीतानागतत्व एतलां सरिखां छतें पणि भिन्न बुद्धि थाई छई। ते बुद्धिनुं कारण परमाणुआने विषं विशेष कहीइं। वैशेषिक मतिं परमाणु परिमंडलसंस्थानि छई। ते आकार सर्व परमाणुनिं सरखो छ। तोहिं पणि योगीनि भेद ग्राहिका बुद्धि थाइं छे तेहर्नु कारण ते विशेष पदार्थः। ते द्रव्यादिकथी भिन्न छ। इंम सर्व पार्थिव परमाणुआ सरखा गुणना छे। अग्निना उध्वत्व लक्षण एकक्रियावंत छई। इम वायुना तिर्यग्गमन क्रियावंत छ। तथा ए[क] आकाशप्रदेशथी जिवारिं एक परमाणुओ स्थितिक्षयें अन्य प्रदेशें जाइं तिवारें ज अन्य परमाणु स्थिति उत्पत्ति ते आकाशप्रदेशे आवी रहें। ते एक देशातीतानागतत्वं ए वैशेषिक प्रक्रियाई जाणवू। ए गुणक्रियादिक पणि सरखै हुँतें परमाणुइं भिन्न बुद्धिनु कारण ते विशेष पदार्थ इति भावः।।५.६॥(५३) हवइं सिद्धांती वदई यदा रे, सामान्य बुद्धिनुं हेत। सामान्य तो गोत्वादिकिं रे, तह विशेषि लहेत॥ चतुर.॥५.७॥(५४) [टबार्थ| हवइं सिद्धांतवादी कहें छइं। सामान्य बुद्धि वचननु कारण सामान्य मानीइं तो गोत्वादिक जाति तथा विशेषनें विषं सामान्य मान्युं जोईई। जिम अनेक गोपिंडने विषई ‘अयं गौः' 'अयं गौः' एह एक बुद्धिनुं कारण ते सामान्य तिम गोत्वादिक सामान्यिं पणि ‘ए गोत्वजाति’ ‘ए अस्वत्व जाति' इत्यादिक जातिरूप एक बुद्धि थाइं छइं। तथा ‘अयं विशेषः’ ‘अयं विशेषः' एहवी एक बुद्धि थाइं छ। ते मात्रै गोत्वादिक जातिं अनि विशेषिं सामान्य मानिवू जोईइं इति भावः॥५.७॥५४॥ [म.] जो जेणिं विशेषीइं रे, बुद्धि वचन ते विशेष। तो पर-अपर सामान्यनि रे, मान्यो जोईइं विशेष॥ चतुर.॥५.८॥(५५) [टबार्थ जो जेणिं करी जेहनें विर्षे विशेष बुद्धि ऊपजें ते विशेष कहीइं। तो परसामान्य जे सत्ता सामान्य अपर
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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