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गुजराती पद्यकृति
[टबार्थ] एह नयनुं लक्षण कहिउं। हवइं नयना भेद कहें छइं। एक द्रव्यार्थिक नय१, बीजो पर्यायार्थिक नय।
तेह नयना एह बई मूल भेद जाणवां। हवें द्रव्यार्थिकनुं स्वरूप कहई छई।।२.५॥ [म.] ए परमारथई द्रव्य ज वंछे, पज्जाय नि उपचारि रे।
सामान्य रूपिं अनवस्थानि, नहीं अरथांतर क्यारि रे॥ श्री.॥२.६॥(१७) [टबार्थ द्रव्यार्थिक ते स्युं कहीइं? एह द्रव्यार्थिक नय परमार्थि = तात्पर्यिं द्रव्यनि ज वांछइं पणि पर्यायनिं
नहीं। अनि एह नय पर्यायनिं सर्वथा न वांछइं तो दुर्नय थाइं ते माटइं पर्यायनि चंचा(चर्चा-सत्ता?) पुरुषनी परि उपचारिं माने। उपचार ते अछता गुणनो आरोप। पर्याय उपचारिक छे, पणि पारमार्थिक नही। ते उपरि हेतु कहें छई। एकरूपिं न रहे, खरविषाणादिकनी परि ते माटें पर्याय ते द्रव्य थकी भिन्न पदार्थ न होइं। इहां हेतु कहेते पंचावयव वाक्यरूप अनुमान सूचव्यु। पंचावयव ते-प्रतिज्ञा१, हेतु २, उदाहरण३, उपनय४, निगमन५। तिहां प्रतिज्ञा ते पक्षनें विर्षे कोईक धर्मनुं साधq, जिम पर्वतनें विषं वह्निनु साध। तिम इहां पर्यायनें विर्षे उपचारपणाचं साधq१। हेतु ते साध्य- साधनार वाक्य, जिम वह्निनु साधन धूम। तिम इहां सामान्य रूपिं अनवस्थान ते हेतु२। उदाहरण ते दृष्टांत. जिम धूमानुमानिं महानस। तिम ईहां खरविषाण३। पक्षनें विषई लिंगनों निर्धार करवो ते उपनय। जिम धूमानुमानिं वह्निव्याप्यधूमवंत ए पर्वत एहवं वाक्य तिम ईहां उपचारताव्याप्यसामान्यरूपअनवस्थितिवंत पर्याय ए वाक्य४ निगमन ते पक्षनें विषं साध्यनो निर्धार करवो ते। जिम धूमानुमानि पर्वत ते वह्निवंत ज ए वाक्य। तिम ईहां पर्याय ते औपचारिक ज एहवं वाक्य५।
ए पंचावयव वाक्य रूप अनुमानि करी पर्यायनिं उपचारपणुं साध्यु इति भावार्थः॥२.६॥ [मु.] आविर्भाव तिरोभाव मात्रिं, परिणमई द्रव्य ज नान्य रे।
उतफणकुंडलितादि अवस्था, नहीं अहिद्रव्यथी अन्य रे॥ श्री.॥२.७॥(१८) [टबार्थ हवइं पर्याय नथी तो नवनवें भाविं उपजें छे विणसें छे ते कोण? ते उपरि कहइं छइं-उत्पत्ति, विनास,
मात्रनिं ते ते विशेष बुद्धिनुं जे कहेंq तेहD कारण ते पर्याइं उपचार करीइं, पणि पारमार्थिक नहीं। परमार्थिं द्रव्य परिणाम तेह ज पर्याय पणि बीजी वस्तु नहीं ते उपरि दृष्टांत-आविर्भाव उत्फणपणे, तिरोभाव विफणपणे तावन्मात्रिं परिणामी अहि फणाटोप-विफण-कुंडलाकार प्रमुख जे अवस्था परिणाम ते सर्प रूप जे द्रव्य तेहथी अन्य नथी। उत्पत्ति विनास तन्मात्रिं परिणमें छइं ते द्रव्य ज पणि पर्याय नही। ते माटई द्रव्य ज छे पणि पर्याय नही। ते विशेष बुद्धिना कहेंवानुं करण ते पर्याय कहीई इति भावार्थः॥२.७॥