SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ नयामृतम् -२ स्यान्नास्त्येव स्यादवक्तव्यमेव लक्षण ए छट्ठो सप्तभंगीनो भेद। (६) अनें अनुक्रमें सकल पदार्थ स्व द्रव्य-क्षेत्र - काल-भावें छइ, पर द्रव्य-क्षेत्र - काल-भावें नथी अनें समकालें विधि-निषेधकल्पनाइं अणकहिंवा योग्य छें। जिम घडो द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावें अनुक्रमें पोतानें रूपें छइं, पटादिकनी अपेक्षाइं नथी अनें एकें समयें सद्रूप - असद्रूप अणकहिंवायोग्य पणि छें ज। इंम एकपदार्थनें विषें स्यादस्त्येव स्यान्नास्त्येव स्यादवक्तव्य एव लक्षण सप्तभंगीनो सातमो भेद। (७) इम एक पदार्थनें विषें ए कल्पना किंम घटें? तिहां दृष्टांत – जिम कोइनें साधुनें दूधनो नियम ने दूध विना दहि, घी, छासि, सकलगोरस जिमइं अनें जेहनें दहीनो नियम ते दही विंना सर्व दुग्धादि कल्पें अनें जेहनें गोरसनियम ते दूध, दही, घी, छासि कांइं न कल्पें तिम जे पूर्वे एक एक भेद स्यादस्ति (१) स्यान्नास्ति(२) स्यादवक्तव्यमेव(३) लक्षण देखाड्या तेहनें अनें संकलितरूप सातमो भेदनो अंतर जाणवो। उक्तञ्च— पयोव्रतो न दध्यत्ति न पयोऽत्ति दधिव्रतः । अगोरसव्रतो नोभे तस्माद् वस्तु त्रयात्मकम्॥ इंम सप्तभंगी जिनप्ररूपी सर्वपदार्थे संमतम्॥ (आप्तमीमांसा-६०)
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy