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________________ गुजराती गद्यकृति शब्दरूप छै पिण निक्षेपानी परणितिरूप वस्तु ते तीन निक्षेपा वस्तु आदि च्यार नयमें छै, भाव निक्षेप वस्तु ते शब्दादिक नयमें छै इम सरदहज्यो। एतलै शब्दनय कह्यो। ___हिवै छट्ठो समभिरूढनय कहै छै। जे वस्तुना केतला गुण प्रगट्या छै केतला नही प्रगटसी अवस्य एहवी वस्तुनें वस्तु कहै ते वस्तुना नामांतराना वाचक अर्थरूप धर्म प्रगट हवै ते पर्यायने ते वस्तु कहीये, जे अर्थ पर्याय प्रगट्या नही ते वस्तु पर्यायपणो ते वस्तुमें न कहै छतां प्रगट पर्याय ते एक करी जांणै जिम जीव चेतन आत्मा एहनो नामार्थ धर्म प्रगट्या ते तेमां गणी पदार्थनो एक अर्थ कहै ते समभिरूढनय कहीजै। ए एक अंस ओछी वस्तुनें पिण पूरी वस्तु कहै। हिवै एवंभूतनय कहै छै। जे वस्तु आपणे गुणे संपूर्ण छै अने आपणी क्रिया करै छै ते वस्तुना वचन पर्याय तथा वस्तु धर्म सर्वप्रगट प्रवर्ततां हवै तेहने ते वस्तु कहीजै, जिम मोक्षस्थानक पहुंतै जीवने सिद्ध कहै जिम पांणी भर्यो, स्त्रीना माथा ऊपरि आवतो, जलधरण क्रिया करतो घडो कहीजै। ए एवंभूतनय कह्यो। एतलै सात नय कह्या। ____ हिवै सात नयना दृष्टांत अनुयोगद्वारसूत्रथी(सूत्र-४७४) लिखीयै छै। जिम कुणही पुरुषै किणही बीजै पुरुषने पूछ्यो—तुं किहां वसै छै? हुं तो लोकमें वसुं छु। ए अशुद्ध नैगमा वली पूछ्यो—जे लोकना त्रिणि भेद छै अधोलोक(१) तिरछो लोक(२) ऊर्ध्वलोक(३) तिहां तुं किहांमें रहै? तिवैरै सुद्ध नैगम कह्यो— जे तिर्छ लोकमें रहुं छु। वली पूछ्यो—जे तिर्छ लोकमें असंख्याता द्वीपसमुद्र छै तुं किसा द्वीपमें रहै छै? तिवारै विशुद्धतर नैगम कह्यो—जे जंबूद्वीपमा रहुं छु। वली पूछ्यौ—जंबूद्वीपमा क्षेत्र घणा छै तुं किसा क्षेत्रमें रहै छै? तिवारै अतिशुद्ध नैगम बौल्यो— जे भरत क्षेत्रमें रहं छु। भरतना छ खंड छै इम कह्यो तिवारै कह्यो देसमें नगर णांम घणा छै ते तूं किहां रहै छै? तिवारै कह्यो—जे हुं आपणे गांम में रहुं छु। वली पाडो छै, घर छै ते बताव्यो। तिहांतांइ नैगम नय जाणवो। अमें संग्रह नय बोल्यो—जे आपण शरीरमें वसुं छु। विवहार नय बोल्यो—जे संथारै बैठो तेतलै बिछावणामें रहुं छु। ऋजुसूत्र नय कह्यो—आपणा सभावमे रहुं छु। शब्द नय कहै—जे हुं आपणा असंख्याता प्रदेशमे वसुं छु। समभिरूढ नय कहै छै हुं आपणै गुणमें रहुं छु। एवंभूत नय कहै—जे ज्ञानदर्शन गुण में वसुं छु।ए दृष्टांत कह्यो तिम कहवो सर्व वस्तुमें। तथा कोईक प्रदेशमात्र क्षेत्र अंगीकार करी पूछ्यो—जे ए प्रदेश केहनो छै? तिवारै नैगम नय कह्यो—जे छ द्रव्यनो प्रदेश छै। जे कारण एक आकास प्रदेश में छ द्रव्य भेला छ। तिवारै संग्रह नय बोल्यो—काल तो अप्रदेश छै ते सर्व लोक में एक समय छै ते एक आकास प्रदेश में जुदो नथी तिण काल विना पांच द्रव्यनो छ। तिवारै विवहार नय बोल्यो—जे द्रव्य मुख्य दीसै छै तेमां वसुं छु। तिवारै ऋजूसूत्र नय बोल्यो—जे जिण द्रव्यनो उपयोग दे पूछीजै ते द्रव्यनो छै ते जो धर्मास्तिकायनो उपयोग तो धर्मास्तिकाय प्रदेश छै जो अधर्मास्तिकायनो उपयोग ये पूछ्यो तो अधर्मास्तिकाय प्रदेश कहीजै।
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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