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________________ ११६ नयामृतम्-२ एतलै पूजा दांन शील तप क्रिया ज्ञान सर्वभाव निक्षेपे सहित लाभ कारण छै। ___ इहां केइ कहै छै—मन परिणाम दृढ करी कीजै ते भाव कहीजै ते कूडा छै। ए तो सुखनी वांछाए मिथ्यात्वी पिण घणाहि करै छै ति न गिणवो। इहां ज सूत्र साख वीतरागनी आज्ञायें हेय, उपादेय परीक्षा करी अजीव, आश्रव, बंध उपरि हेय त्यागभाव; जीवना स्वगुण, संवर, निर्जरा, मोक्ष उपरि उपादेय परिणाम भाव कहीजै। एतलै रूपी द्रव्य ते गुण कहीजै अमें अरूपी गुण ते भाव। एतलै मन-वचन-कायाथी लेश्यादिक सर्व द्रव्यनिक्षेपैमैं छै अने ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य, ध्यान प्रमुख जीवगुण सर्व भावमें छ। ए भावनिक्षेपो नाम, थापना, द्रव्यसुं सहित छै। एतलै च्यार निक्षेपा कह्या। हिवै च्यार निक्षेपा लगाय दिखाडै छै। नामजीव मांचै नें वाणमें एक वांणनें जीव कही बोलावै छै। थापना जीव मूर्ति प्रमुख जे थापीजै। द्रव्य जीव एकेंद्रीथी पंचेंद्री पर्यंत सर्व जीव पिण उपयोग भेलै नही ति वारै। भाव जीव जे जीव स्वरूप ओलखी समकितना उपयोगमें है। इम धर्मास्तिकायादिक द्रव्यमें जांणवो नामथी बोलावणो जिम धर्म द्रव्य। थापना धर्मास्तिकाय अक्षर एहवा लिखणा अथवा दृष्टांत कारणे कांई वस्तु थापवी। द्रव्य धर्मास्तिकाय जे असंख्यात प्रदेशी धर्मद्रव्य छै। भावनिक्षेपैमें धर्मास्तिकाय जिवारै चलण गुणनी अपेक्षा सहित ओलखीयै। हिवै नामसाधु केहनो साधु एहवो नाम छै। थापनासाधु जे थापना कीजै। द्रव्यसाधु जे पंचमहाव्रत पालै, क्रिया अनुष्ठान करै, आहार सूझतो लै पिण ज्ञान ध्यांन मोक्षनो तेहवो उपयोग नथी। भावसाधु जे साधुनी करणी करै भाव संवर मोक्षनो साधक ते साधु कहीजै। नामअरिहंत जे किणहीकनो अरिहंत नाम छै। थापना अरिहंतनी प्रतिमा। द्रव्य अरिहंत जिहांतिई केवलज्ञान न ऊपनो तिहांताई छद्मस्थ थका भगवंतनो जीव। भाव अरिहंत जे केवल ज्ञान पाम्या पछै लोक अलोक देखै ते जांणवो। इम सिद्धमें पिण जांणी कहवा। तथा नाम ज्ञान एहवो किणही जीवनो भावें अजीवनो नाम। थापना ज्ञान पुस्तकमें लिख्यो थको। द्रव्यज्ञान जे उपयोग विना सिद्धांतनो भणवो अथवा अन्यमतीना शास्त्र सर्व अथवा ज्ञशरीरादि द्रव्यज्ञान जाणवो। भावज्ञान नवतत्त्वनो जाणवो। तथा नामतप तप एहवो केहनो नाम। थापनातप पुस्तकांमे तपनी विधिनो लिखनो। द्रव्यतप पुण्य रूप तप मासक्षमण करवो। भावतप परवस्तु ऊपर त्यागनो परिणाम। इम संवरादिक सर्व च्यार च्यार निक्षेपा जांणवा। तथा अनुयोगद्वारमें कह्यो छै— जत्थ य जं जाणिज्जा णिक्खेवं णिक्खवे निरवसेस। जत्थ य णो जाणिज्जा चउक्कयं णिक्खवे तत्थ॥ (अनुयोगद्वार-७) ए च्यार निक्षेपा कह्या। इहां पहिला तीन निक्षेपा ते धुरला च्यार नयमध्ये द्रव्य छै अनें भावनिक्षेपो ते शब्दादिक तीन नय छै। तो इहां च्यार निक्षेपा शब्दनयमां का कह्या? इहां नामादिक एहवा नाम ते च्यार निक्षेपा नाते
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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