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________________ १०४ (३.३) अज्ञातकर्तृ ॥सप्तनयविचारः॥ नयामृतम् - २ [१] अथ नयविचार अनुयोगद्वारे सूत्रे ए रीते लगाडी छै ते रीत लगाडवी जुगत छै। श्वेतांबरमते तो ए परमाण छै पछे आप आपरी उक्त लगावे तेहनी वे जांणे पिण शास्त्रनो मत देखाड्यो वाहीजें | अमुकें शास्त्रमां ए रीते लगाडी छै। अनुयोगद्वारे पाथा' उपर सात नय लगाडी तेहना च्यार विकल्प कीया। प्रथम तो पाथो लेवा वनमें चाल्यौ ने लकडी काटी घडतां तथा पाथो नीपजवू को तेहने पाथो कहे? ते नैगमविवहार ने मतें पाथो कहै, दोय नयनो एक विकल्प कीयो ने पाथो धांन मापण रे कांम आवे । धांननो संग्रह होय तेहने संग्रहनय पाथो कहै। अनै ऋजुसूत्रनय ते पाथाने पाथो कहे अने धान पाथाथी माप्यो ते धांनने पाथो कहे। अने शब्द, समभिरूढ, एवंभूत ए तीन नयनो एक विकल्प कह्यौ ते तो पाथानें विषें जीवनो उपयोग तेहनें ज पाथो कहै । पथागारसपथो' ए पाठ पिण जड लकडीनें पाथो न कहें। [२] दूजो दृष्टांत वसती उपर कह्यौ ते किणहीक पूछयौ तु किहां वसें? तरे कह्यौ हुं लोकमें वसु छु। पछे तिरछो लोक, जंबूद्वीप, देश, नगर, घरमें वसतो कह्यौ । तठाताई नेगमव्यवहारनो मत अने संग्रह तो संथारे वेगे तिण वसतो मान्यो ओर ऋजु तो असंख्यात आकाश परदेश अवगाया तिहां वसतो कयो अने शब्द, समभिरूढ, एवंभूत तौ आत्माना स्वभावमां वसतो मांन्यौ। आसनायवसांमी ए पाठसुं एहना च्यार विकल्प कर्या अने परदेशीनी पृच्छायें सात विकल्प कर्या। फेर च्यार निखेपा माथै सात नय लगाइ तिहां तेहना पिण च्यार विकल्प कर्या । नैगम, विवहार तो एक आवश्यकनें एक मांने अने घणा आवश्यकने घणा मांने अने संग्रह तो एक तथा घणा आवश्यकने एकही ज माने अर ऋजु तो एक आवस्यगही ज मांने तेही पोतानौ, घणा न वांछै अने शब्द, समभिरूढ, एवंभूत तो आवस्यगने विषै भाव हुवें तो माने। [३] फेर संखमाथे सात नय लगाडी ए रीतें नैगम, संग्रह, विवहार तो आगले भवें संख ऊपजसी तेहने संख कहें अनेक जुतो संखनो आउखो बंध्यो पछै संख कहे अने शब्द, समभिरूढ, एवंभूत तो संखने सन्मुख हुवो संखपणे उपज्यौ तरें भावसंख कहें एहना तीन विकल्पही ज कीया। फेर ऋजुसूत्रों द्रव्यही ज गिणी अनें केईक आचार्य भावने गिणी पिण देईचंद जीना नयचक्र में कह्यौ । अनें ऋजुसूत्रनय वरतमान काले जे भाव होय ते मांनें । ज्ञान उपयोगने ज्ञान कहे, दर्शन उपयोगनें दर्शन कहै, सामायक उपयोगी ते सांमायकी कहें, कषाय उपयोगीनें कषाई कहें, पिण ए वात तो नही शुद्धभाव ऋजुनय मांनों शुद्ध अशुद्ध दोनु मानौ नियाय । ततौ पछै प्रश्न कर्यौ — ए रीत तौ शब्दनय ही मांनै पछै फेर मांहोमांहि फेर शु पड्यौ? तरें कह्यौ तर्कशास्त्रै एहवो कयो ऋजु कारणरूप अने शब्द कारजरूप ए फेर पाम्यौ। [४] हिवे एह बोलांने अनुसारे नवतत्त्व षट्द्रव्य उपर लगाडुं हुं । प्रथम तो जीवतत्त्व अजीवतत्त्व दोय ही ज छै। एहनां संयोगथी सात तत्त्व ऊपना । तेहमें पिण पुन्यतत्त्व अरु पापतत्त्व ए दोय तत्त्व तेही ज आठ करम तेहथी पांच १. =प्रस्थक २.पत्थयाहिगारजाणगो पत्थओ(अनुयोगद्वासूत्र-४७४) ३. देवचंद्र ४. न्याय
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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