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________________ १०० नयामतम-२ (३.२) आ. श्रीपार्श्वचन्द्रसूरिविरचित ॥सप्तनयविचार॥ अथ सप्तनयविचारो लिख्यते। से किं तं नये? सत्त मूलनया पन्नत्ता। तं जहा—णेगमे संगहे ववहारे उज्जुसुए सद्दे समभिरूढे एवंभूते। (अनुयोगद्वार-सूत्र ७१५) श्रीजिनवचन मूलभूत सात नय प्ररूप्या छइ। ते केहा? नैगमनय (१), संग्रहनय (२), व्यवहारनय (३), ऋजुश्रुत(सूत्र)नय (४), शब्दनय (५), समभिरूढनय (६), एवंभूतनय (७)। एहनां संक्षेपइं नाम भण्यां छइ। हवइ एहनओ विचार संक्षेपई लखीइ छ।। तत्थणेगेहिं माणेहिं मिणइ त्ति णेगमस्स [य] निरुत्ती। इति सूत्रम्। (अनुयोगद्वार-सूत्र १३६) एहनउ अर्थ-तत्थ कहतां तिहां सात नय विषइ नैगमनय ते स्यनुं कहीइ? जे अनेक मान अर्थ जाणवाना विचार सामान्य विशेषादिक तिणि करी पदार्थनो भाव मिणइ एतावता जाणइ ते नैगमनय कहइवाइ। ए नैगमशब्दनी निरुक्ति कहतां व्युत्पत्ति जाणवी। एतलइ स्यउं काउं दृष्टांति करी प्रीछवइ छइ। जिहां अनेक प्रकार विचार करी एक पदार्थनउ भाव जाणीइ ते नैगम। जिम को एक पुरुष किणही पुरुषइं पूछ्यउ अहो! पुरुष! तउं किंहां वसइं? तिणि काउं— हउं लोकि वसउं। इम कह्यइ छतइ नैगमनयवादी सामान्य विशेषादिक करी पूछइ छइ–लोकमांहि तउ केहइ लोकि वसई ऊर्ध्वलोकि अथवा अधोलोकि अथवा तिर्यग्लोकि? तिवारइं पेलई काउं—हउँ तिर्यग्लोकि वसउं। तिवारइं नैगमवादी वली पूछइ तिर्यग्लोकमांहि असंख्याता द्वीपसमुद्र छइ तो केहइ द्वीपि वसइ? तिवारइं ते कहइ— हउं जंबूद्वीपि वसउं| तिवारइं वली नैगमवादी पूछइ—जंबूद्वीपमांहि भरतादिक क्षेत्र अनेक छइ तउं केहइ क्षेत्रि वसइं? तिवारइं ते पुरुष कहइ हउं भरतक्षेत्रि वसउं। तिवारई वली नैगमवादी पूछ।—अहो! भरतक्षेत्रमांहि अनेक ग्राम, नगर, आगर, खेड, कब्बड, मडंब, द्रोणमुख, पट्टण, आश्रम, सन्निवेश, राजधानी छइ। तिणि कारणि तउ किहां वसइं? पेलई काउं—हउं पाडलीपुरि वसउं। तिवारइ पृच्छक बोल्यउ—पाडलीपुरि अनेक ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्रना अनेक शतसहस्र लाख घर छइ तउं किहां वसइ? तिवारइं ते कहइ हउं देवदत्तनइ घरि वसउं| तिवारइं वली पूछइ अहो! देवदत्तनइं घरि अनेक उरासाल(उरडा), पट्टसाल, चित्रशाली, सभा, गवाक्ष, आवास छइ तउं किहां वसइं? तिवारइं ते कहइ हउं उरडई वसउं। इम जे एक भाव सामान्यविशेषादिकगामिइं बोलीयइ तिहां नैगमनयवादी जाणवओ इम अन्यत्र पणि जाणवउ विचारवउ। इति नैगमनयविचार। १. नंदी अणुओगदाराई,सम्पा.पुण्यवि.म., प्रका.महावीर जैनविद्यालय २. नंदी अणुओगदाराई,सम्पा.पुण्यवि.म., प्रका.महावीर जैनविद्यालय ३. पछइ को. ४. =ओरडो
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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