________________ भासगाहा-५५७४-५५८५] चउत्थो उद्देसो 835 "इह वि गिही०" ["सिटुम्मि न संगि०"] गाहा / कण्ठ्या / सो य तेहिं न संगिण्हियव्वो / अण्णगणं च संकंते पुरिल्लेहिं संघाडओ पयट्टेयव्वो / सो गंतुं जइ अजतणाए कहेति- एस साधिकरणो, सव्व गच्छेण वि(णि)सक्कितो (उव)सामेतुं, एवं समक्खं जइ साहति अजयणा भवति / एमाए जयणाए सीसइ / 'एगतर' त्ति पुरिल्लसंजयाणं तस्स वा गिहत्थस्स, ताधे सो पुण सव्वेहिं पण्णवेयव्वो / उवसामियो गिहत्थो, तुमं पि खामेहि एहि वच्चाहि / दोसा हु अणुवसंते, ण य सुज्झति तुज्झ सामइगं // 5580 // "उवसामियो०" गाहा। एवं सो तत्थ विट्ठागं अलभमाणो। गाढयरं पदुट्ठो तस्स गिहत्थस्सतमतिमिरपडलभूतो, पावं चिंतेइ दीहसंसारी / पावं ववसिउकामे, पच्छित्ते मग्गणा होति // 5581 // "तमतिमिर०" गाहा / एवं चिंतेति-उद्दवणट्ठाए एत्थ पच्छित्ते मग्गणा / वच्चामि वच्चमाणे, चउरो लहुगा य होंति गुरुगा य। उग्गिण्णम्मि य छेदो, पहरणे मूलं च जं जत्थ // 5582 // "वच्चामि०" गाहा / 'वच्चामि' त्ति संकप्पे कए :: 4 (चतुर्लघु), वच्चमाणो त्ति पदभेदे कए :: / (चतुर्गुरु), वच्चंतो कटुं मग्गइ ::: 6 (षड्लघु), लद्धे वि गहिते ::: / 6 (षड्गुरु), उग्गिण्णे छेदो / पहारे पडिए जइ न मरइ छेदो चेव, जं चण्णं गाढादिपरियावणादि / अह मओ मूलं / तं चेव णिवेती, बंधण णिछुब्भण कडगमद्दो य / आयरिए गच्छम्मि य, कुल गण संघे य पत्थारो // 5583 // "तं चेव०" गाहा / सो गिहत्थो तं कयाइ वहट्ठाए आगयं दटुं तं चेव साहु णिट्ठवेज्जा पाणेहिं बंधेज्ज वा / सेसं कण्ठ्यम् / एवं ता एगाणियस्स पच्छित्तं-अह सहायए गेण्हति, इमे संजयगणे गिहिगणे, गामे नगरे व देस रज्जे य। अहिवति रायकुलम्मि य, जा जहिं आरोवणा भणिया // 5584 // “संजय०" गाहा / अस्य व्याख्यासंजतगणो तदधिवो, गिही तु गाम पुर देस रज्जे वा। एतेसिं चिय अहिवा, एगतरजुतो उभयतो वा // 5585 //