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________________ विसेस [ सेणापयं 77 44 सव्व पत्तेय समण दिक्खिय, पुरिसा इत्थी य सव्वें कथा | पच्छण्ण कडग चिलिमिणि, मज्झे वसभा य मत्तेणं ॥ ४८१७॥ पच्छन्न असति निण्हग, बोडिय भिच्छुय असोय सोया य । पउरदव वड्डगादी, गरहा य सअंतरं एक्को ॥४८१८॥ पासंडीपुरिसाणं, पासंडित्थीण वा वि पत्तेगे । पासंडित्थि पुमाणं, व एक्कतो होतिमा जया ॥ ४८१९ ॥ जे जह असोयवादी, साधम्मी वा वि जत्थ तहि वासो । णिहुया य जुद्धकाले, ण वुग्गहो णेंव सज्झाओ ॥४८२०॥ " पत्तेय समण० " [" पच्छन्न असति०" "पासंडीपुरिसाणं ० असोयवादी०'' ] गाहा । कइयाइ रोहए वसहीसु थेवासु राउलसंदेसो होज्ज, जहा पासंडाणं इत्थिवग्गस्स एगा वसही, पुरिसवग्गस्स एगा वसही । तत्थ संजईणं अण्ण तित्थीय जयणा, तिधेगं पासे जत्थ अप्पसागारियं तत्थ ठायंति । अह नत्थि अवगासो ताहे जाओ निण्हिज्जाओ तासिं पासे ठायंति । जाहे नत्थि ताहे गोणीणं पासे, आजीवियाणं रत्तपडियाणं, तत्थ जंपंति घडिमत्तएणं पउरदववड्डगादीसु जेमणवेलाए । संजयाणं अन्नतित्थिएहिं समं का जयणा ? जत्थ अप्प सागारियं, ताहे चिलिमिणी करेंति, जाहे न होज्ज चिलिमिणी पहा, पच्छा णिण्हियाणं पासे ठायंति । एवं गोणाणंतरपडाणं, जे सोयवाई ते परिहरिज्जंति । उच्चारपासवणे भत्तट्ठाणाए य पवरं दवं गेण्हंति । संसट्टपाणयं उन्होदयं वा गेण्हंति । जइ धरेत्तगा अत्थि । अन्ने धरेन्ति अन्ने जेमंति एगो परिवेसइ । तेहिं जिमिएहिं ते धरेंति । अह वेला न होज्ज ताहे ऊणियं अच्छुणित्ता तस्सुवरिं पोत्तियं, तस्सुवरिं भायणाणि ठविज्जति । पच्छा एगो परिवेसेइ | भरंति सो य परिवेसया अप्पणो कमढए पक्खिवइ जत्तिया तेसिं बुज्झइ । जत्थ कमढा ण पहुप्पंति तत्थ दो तिन्नि वा एगओ संघाडिज्जंति, माउगा पिया पुत्ता वा । एवं संजोएत्ता भण्णइ - तुमं अमुएण समं जेमेहि । समुद्दिट्ठा कुरुकुचं करेंति, काइयमत्तएहिं जयंति । एवं ता पुरिसेहिं समं । अहवा इत्थीणं पुरिसाणं पासंडत्थाणं एगओ चेव वसही तत्थ संजयाइ संजईणं जाव पच्छन्ना वसही तं देंति । अह नत्थि चउहिं दिसाहिं, ताहे तिहिं दिसाहिं एगओ चिलिमिणी कीरइ । जाहे तिन्नि वि दिसाओ ण होज्ज ताहे दोहि वि दिसाहिं जाव एगा वि दिसाए भवओ पच्छन्ना, जाइय भूमीग्ग जाहे नत्थि पच्छन्ना ताहे मज्झे रतिं पि छोडूणं तहेव सुवंति तहेव मत्तएहिं जयंति समुद्दिसिं तहेव, एस वसही जयणा । ६९४ जे जह -
SR No.007787
Book TitleKappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 02
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages423
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bruhatkalpa
File Size4 MB
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