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पुनः पुनः गमनागमन नहीं करना चाहिए। इस व्याख्या में निम्न विषयों पर विचार किया गया है—वैराज्य, विरुद्धराज्य, सद्योगमन, सद्यो-आगमन, वैर आदि पद, वैराज्य के चार प्रकार ( अराजक, यौवराज्य, वैराज्य, द्वैराज्य), वैराज्य–विरुद्धराज्य में आने-जाने से लगने वाले आत्मविराधना आदि दोष, वैराज्य–विरुद्धराज्य में गमनागमन से संबंधित अपवाद और यतनाएँ। अवग्रहप्रकृतसूत्रः
प्रथम अवग्रहसूत्र की व्याख्या करते हुए भाष्यकार कहते हैं कि भिक्षाचर्या के लिए गए हुए निग्रंथ से यदि गृहपति वस्त्र, पात्र, कंबल आदि के लिए प्रार्थना करे तो उसे चाहिए कि उस उपकरण को लेकर आचार्य के समक्ष प्रस्तुत करे और आचार्य की आज्ञा लेकर ही उसे रखे अथवा काम में ले। वस्त्र दो प्रकार का है—याचनावस्त्र और निमंत्रणावस्त्र। याचनावस्त्र का स्वरूप पहले बताया जा चुका है। निमंत्रणावस्त्र का स्वरूप वर्णन करते हुए आचार्य ने निम्नोक्त बातों का स्पष्टीकरण किया है निमंत्रणावस्त्र संबंधी सामाचारी, उससे विरुद्ध आचरण करने से लगने वाले दोष और उनका प्रायश्चित्त, निमंत्रणावस्त्र की शुद्धता का स्वरूप, गृहीत वस्त्र का स्वामित्व आदि।
द्वितीय अवग्रहसूत्र की व्याख्या में बताया गया है कि स्थंडिलभूमि आदि के लिए जाते समय यदि कोई निग्रंथ से वस्त्रादि की प्रार्थना करे तो उसे प्राप्त उपकरणादि को आचार्य के पास ले जाकर उपस्थित करना चाहिए तथा उनकी आज्ञा मिलने पर ही उनका उपयोग करना चाहिए।
तृतीय और चतुर्थ सूत्र की व्याख्या में निग्रंथियों की दृष्टि से वस्त्रग्रहण आदि का विचार किया गया है। निग्रंथी गृहपतियों से मिलने वाले वस्त्र-पात्रादि को प्रवर्तिनी की आज्ञा से ही अपने काम में ले सकती है। रात्रिभक्तप्रकृतसूत्रः
निग्रंथ-निग्रंथियों को रात्रि के समय अथवा विकाल में अशन-पानादि का ग्रहण नहीं कल्पता। प्रस्तुत सूत्र का विवेचन करते हुए भाष्यकार ने निम्न विषयों की चर्चा की है—'रात्रि' और 'विकाल' पदों की व्याख्या, रात्रि में खाने-पीने से लगने वाले आज्ञाभंग, अनवस्था, मिथ्यात्व, संयमविराधना आदि दोष, रात्रि भोजनविषयक 'दिवा गृहीतं दिवा भुक्तम्', 'दिवा गृहीतं रात्रौ भुक्तम्', 'रात्रौ गृहीतं दिवा भुक्तम्' और 'रात्रौ गृहीतं रात्रौ भुक्तम्' रूप चतुर्भंगी एवं तत्संबंधी प्रायश्चित्त, रात्रिभोजनग्रहणसंबंधी आपवादिक कारण; रुग्ण, क्षुधित, पिपासित, असहिष्णु, चंद्रवेध अनशन आदि में संबंधित अपवाद, अध्वगमन अर्थात् देशांतरगमन की अनुज्ञा ; अध्वगमनोपयोगी उपकरण; १. चर्मद्वार— तलिका, पट, वर्ध, कोशक, कृत्ति, सिक्कक, कापोतिका आदि; २. लोहग्रहणद्वार—
१.गा.२७५९-२७९१४
२.गा.६०३-६४८। ३.गा.२७९२-२८१३। ४.गा. २८१४। ५.गा.२८१५-२८३५।
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