________________
वैराज्यविषयक सूत्र में निग्रंथ-निग्रंथियों को विरुद्ध राज्य प्रतिकूल क्षेत्र में तत्काल-तुरंत आने-जाने का निषेध किया है। जो निग्रंथ-निग्रंथि विरुद्ध राज्य में तुरंत आता-जाता है अथवा आनेजाने वाले का अनुमोदन करता है उसे चतुर्गुरु प्रायश्चित्त करना पडता है।
अवग्रहसंबंधी प्रथम दो सूत्रों में यह बताया गया है कि गृहपति के यहाँ भिक्षाचर्या के लिए गए हुए अथवा स्थण्डिलभूमि— शौच आदि के लिए जाते हुए निग्रंथ को कोई वस्त्र, पात्र, कंबल आदि के लिए उपनिमंत्रित करे तो उसे वस्त्रादि उपकरण लेकर अपने आचार्य के पास उपस्थित होना चाहिए एवं आचार्य की स्वीकृति प्राप्त होने पर ही उन्हें अपने पास रखना चाहिए। तृतीय एवं चतुर्थ सूत्र में बताया गया है कि गृहपति के यहाँ भिक्षाचर्या के लिए गई हुई अथवा स्थण्डिलभूमि आदि के लिए निकली हुई निग्रंथी को कोई वस्त्रादि के लिए उपनिमंत्रित करे तो उसे वस्त्रादि ग्रहण कर प्रवर्तिनी के समक्ष उपस्थित होना चाहिए एवं उसकी स्वीकृति लेकर ही उन उपकरणों का उपयोग करना चाहिए।
रात्रिभक्तविषयक प्रथम सूत्र में साधु-साध्वियों के लिए रात्रि के समय अथवा विकाल— असमय में आहार आदि ग्रहण करने का निषेध किया गया है। द्वितीय सूत्र में आपवादिक कारणों से पूर्वप्रतिलिखित(निरीक्षित) वसति, शय्या, संस्तारक आदि के ग्रहण की छूट दी गई है।
रात्रिवस्त्रादिग्रहणप्रकृत सूत्र में साधु-साध्वियों के लिए रात के समय अथवा विकाल में वस्त्र, पात्र, कम्बल, रजोहरणादिक के ग्रहण का निषेध किया गया है।
हृताहृतिकाप्रकृतसूत्र के रात्रिवस्त्रादिग्रहणप्रकृतसूत्र अपवाद के रूप में है। इसमें यह बताया गया है कि साधु अथवा साध्वी के वस्त्रादिक चोर उठा ले गए हों और वे वापिस मिल गये हों तो उन्हें रात्रि के समय भी ले लेना चाहिए। उन वस्त्रों को यदि चोरों ने पहेने हों, धोये हों, रंगे हों, घोटे हों; मुलायम किए हों, धूप आदि से सुगंधित किये हों तथापि वे ग्रहणीय हैं।
अध्वगमनसूत्र में निग्रंथ-निग्रंथियों के रात्रिगमन अथवा विकाल-विहार का निषेध किया गया है। इसी प्रकार आगे के सूत्र में यह बताया गया है कि निग्रंथ-निग्रंथियों को रात्रि अथवा विकाल के समय संखडि में अर्थात् दावत आदि के अवसर पर तन्निमित्त कहीं नहीं जाना चाहिए।
विचारभूमि एवं विहारभूमि संबंधी प्रथम सूत्र में आचार्य ने बताया है कि निग्रंथों को रात्रि के समय विचारभूमि उच्चारभूमि अथवा विहारभूमि-स्वाध्यायभूमि में अकेले जाना अकल्प्य हैं। आवश्यकता होने पर उन्हें अपने साथ अन्य साधु अथवा साधुओं को लेकर ही बाहर निकलना चाहिए। इसी प्रकार निग्रंथियों को भी रात्रि के समय अकेले बाहर नहीं जाना चाहिए।
आर्यक्षेत्रविषयक सूत्र में निग्रंथ-निग्रंथियों के विहारयोग्य क्षेत्र की मर्यादा पर प्रकाश डाला गया है। पूर्व में अंगदेश(चंपा) एवं मगधदेश(राजगृह) तक, दक्षिण में कौशांबी तक, पश्चिम में स्थूणा तक
( २५ )