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________________ बुद्धिसागरः (अन्वयः) यदा सग्निवारुणःश्च युता भद्रा तिथिः यदि सौरारयोः वारः तदा जाता विषाङ्गना (भवति)। (अर्थः) आश्लेषा, कृत्तिका, शतभिषानक्षत्रों से युक्त (भद्रातिथि) हो और शनि या रविवार हो तब पैदा हुई कन्या विषकन्या होती है। [मूल| मूलादितिस्वातिकरेन्द्राधापौष्णात्तरावासवरोहिणीषु। पैत्र्याश्विपुष्यश्रुतिवारुणेषु सुरप्रतिष्ठा शुभदा च दीक्षा ॥३१८॥ (४.५३) (उपजातिः) (अन्वयः) मूलादितिस्वातिकरेन्दुराधापौष्णात्तरावासवरोहिणीषु पैत्र्याश्विपुष्यश्रुतिवारुणेषु सुरप्रतिष्ठा दीक्षा च शुभदा (भवति)। (अर्थः) मूल, पुनर्वसु, स्वाति, हस्त, मृगशीर्ष, अनुराधा, रेवती, तीनउत्तरा(उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तरा भाद्रपद) धनिष्ठा, रोहिणी, मघा, अश्विनी, पुष्य, श्रवण, शतभिषा इन नक्षत्रों में देव की प्रतिष्ठा और दीक्षा शुभफल देती है। [मूल] सङ्क्रान्त्युभयतो यामद्वये विष्ट्यां न वैधृतौ। व्यतीपाते न गण्डान्ते यामार्द्ध कार्यमारभेत्॥३१९॥(४.५४) (अन्वयः) सङ्क्रान्ति उभयतो यामद्वये विष्ट्यां वैधृतो न व्यतीपाते गण्डान्ते यामार्द्ध न कार्यम् आरभेत्। (अर्थः) संक्रान्ति (सूर्य का राशिपरिवर्तन) के पूर्व का एक प्रहर और पश्चात् एक प्रहर, विष्टि भद्रा, वैधृति, व्यतिपात और गंडात के (पूर्व और पश्चात्) अर्ध प्रहर में कार्य का आरम्भ नहीं करना चाहिए। [मूल] शुभकर्म तथा यानं गृहारम्भादिकं तथा। सितेन्दुजीवे नो कार्यं बाले वृद्धे तथाऽऽस्तगे॥३२०॥(४.५५) (अन्वयः) बाले वृद्धे तथास्तगे सितेन्दुजीवे शुभकर्म तथा यानं तथा गृहारम्भादिकं नो कार्यम्। (अर्थः) शुक्र, चन्द्र और गुरु बाल, वृद्ध वा अस्त हो तब प्रयाण, गृह आरम्भ आदि शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। [मूल] ग्रासादिसप्तवारेषु मासि हीनेऽधिके तथा। क्रूरविद्धे क्रूरयुते भे कार्यं नारभेत् क्वचित्॥३२१॥(४.५६) (अन्वयः) ग्रासादिसप्तवारेषु तथा हीनेऽधिके मासि क्रूरविद्धे क्रूरयुते भे क्वचित् कार्यं न आरभेत्। (अर्थः) मास के आदि के सात वार में(?) हीनमास में या अधिकमास में, क्रूर ग्रह से विद्ध और क्रूर ग्रह से युक्त नक्षत्र में शुभकार्य का आरम्भ कभी नहीं करना चाहिए। [मूल) मेषको नक्रकन्याश्च कर्कमीनतुलाभृतः। तुङ्गाः सूर्यादिखेटानामुच्चान्नीचं तु सप्तमम्॥३२२॥(४.५७) १. अयं श्लोकः हस्तप्रतिषु न दृश्यते-को२०००८, को१५९३२, ओ २८७८
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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