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________________ चतुर्थः प्रकीर्णकतरङ्गः (अन्वयः) मेषको नक्रकन्याश्च कर्कमीनतुलाभृतः । तुङ्गाः सूर्यादिखेटानामुच्चात्तु सप्तमं नीचम्। (अर्थः) [मूल] [मूल] गुरुर्जीवबुधौ काव्यकोविदौ च विभास्कराः । विकुजावींद्विदुसूर्यान्मित्राणि विकुजेन्द्विना ॥३२३॥(४.५८) (अन्वयः) गुरुः जीवबुधौ काव्यकोविदौ च विभास्कराः विकुजावीन्दु-इन्दु सूर्यान् मित्राणि विकुर्जेद् विना। (अर्थः) चंद्र, मंगल और गुरु सूर्य के मित्र ग्रह है। सूर्य और बुध चंद्र के मित्र ग्रह है। सूर्य, चंद्र और के मित्र ग्रह है। सूर्य, चंद्र और मंगल गुरु के मित्र ग्रह है। बुध, शनि और राहु शुक्र के मित्र ग्रह है। बुध, शुक्र और राहु शनि के मित्र ग्रह है। गुरु मंगल (अर्थः) मेष राशि सूर्य की उच्च राशि है, मकर राशि मंगल की उच्च राशि है, कन्या राशि बुध की उच्च राशि है, कर्क राशि गुरु की उच्च राशि है, मीन राशि शुक्र की उच्च राशि है, तुला राशि शनि की उच्च राशि है, अपनी उच्च राशि से सातवी राशि नीच होती है। सूर्य की नीच राशि तुला है, मंगल की नीच राशि कर्क है, बुध की नीच राशि मीन है, गुरु की नीच राशि मकर है. शुक्र की नीच राशि कन्या है, शनि की नीच राशि मेष है। [मूल] मूर्ती चन्द्रसितौ धने सुरुगुरुर्जीवं विनाऽरित्रिगाः, शुक्रज्ञौ चतुरस्रौ गुरुसितौ धर्मात्मजः स्वौ शुभौ । जीवेन्दू द्युतगौरव (ख) गाः शनिरविश्मापुत्रचन्द्रा ग्रहाः, सर्वे लाभगताश्च गोचरविधौ शुक्रः शुभश्चान्त्यगः ॥ ३२४॥ (४.५९) (शार्दूलविक्रीडितम्) (अन्वयः) गोचरविधौ चन्द्रसितौ मूर्ती, सुरुगुरुः धने, जीवं विनाऽरित्रिगाः, चतुरस्रगौ शुक्रज्ञौ, गुरुसितौ धर्मात्मजः स्वौ शुभौ, द्युतगौ जीवेन्दू, खगाः शनिरविश्मापुत्रचन्द्रा ग्रहाः (शुभाः भवन्ति), लाभगताश्च सर्वे (शुभाः भवन्ति), अन्त्यगः शुक्रः शुभः (भवति)। ६५ लग्न में गुरु और शुक्र धन स्थान में गुरु, छठे और तीसरे स्थान में गुरु के आलावा ग्रह, छठे आठवे में बुध और शुक्र, पांचवें और नौवें स्थान में गुरु और शुक्र, गुरु और चन्द्र सातवें स्थान में शुभ होते हैं। गुरु बारहवें स्थान में शनि, सूर्य, मंगल और चन्द्र आठवें स्थान, शुक्र व्यय स्थान में गोचर में शुभ होते हैं। (गोचर में चन्द्र और शुक्र प्रथम स्थान में हो तो शुभ होते हैं। गुरु दुसरे स्थान में हो तो शुभ होता है। गुरु को छोडकर अन्य ग्रह तीसरे या छठे स्थान में हो तो शुभ होते हैं। चतुस्र स्थान में शुक्र और गुरु शुभ होते हैं। नौवें और पांचवें स्थान में गुरु और शुक्र शुभ होते हैं। | गुरु और चन्द्र सातवें स्थान में शुभ होते हैं। आठवें स्थान में शनि, सूर्य, मंगल, चन्द्र शुभ माने जाते है। ग्यारहवें स्थान में सभी ग्रह शुभ माने जाते हैं। शुक्र बारहवें स्थान में शुभ माना जाता है।) व्ययाऽष्टमगताः सौम्याः सर्वकार्येषु निन्दिताः । त्रिकोणधनकेन्द्राष्टस्थिताः पापग्रहास्तथा॥३२५॥(४.६०) १. अयं श्लोकः हस्तप्रतिषु न दृश्यते- को२०००८, को१५९३२, ओ २८७८
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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