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________________ तृतीयो व्यवहारतरङ्गः (अन्वयः) राजगेहस्य समीपे, हिंस्रकारुकसन्निधौ, कुप्रातिवेश्मके स्थाने श्मशाने च न संवसेत्। (अर्थः) राजा के घर के पास, हिंसक के पास, नौकर के पास, खराब पडोसी के पास और स्मशान भूमि में नहि रहना चाहिए। [मूल] खनित्वा करमात्रं हि भुवं तेनैव पूरयेत्। यद्यूनं तदनिष्टं स्यादधिकं तच्छुभं मतम्॥२५३॥(३.५९) (अन्वयः) करमात्रं हि भुवं खनित्वा तेनैव पूरयेत् यद्यूनं तदनिष्टं स्यात् अधिकं तच्छुभं मतम्। (अर्थः) केवल (एक) हाथ प्रमाण भूमि को खोदकर उससे हि (उस मिट्टी से) भरो, भरने के बाद मिट्टी कम पड गई तो अनिष्ट मानो, और भरकर कुछ बाकी रही तो शुभ मानना। [मूल] मृदुध्रुवगुरुस्वातिहस्तवासववारुणैः। वास्तुनः सन्निवेशः स्यात् तत्प्रवेशः करोज्झितैः॥२५४॥(३.६०) (अन्वयः) मृदुध्रुवगुरुस्वातिहस्तवासववारुणैः वास्तुनः सन्निवेशः स्यात्। करोज्झितैः तत्प्रवेशः (स्यात्।। (अर्थः) मृदुसंज्ञक नक्षत्र,ध्रुवसंज्ञक नक्षत्र,पुष्य नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र,हस्त नक्षत्र,धनिष्ठा नक्षत्र,शतभिषा नक्षत्र इन नक्षत्रों में वास्तु का संनिवेश होता है। इन नक्षत्रों के चरण को छोडकर प्रवेश होता है। [मल] ध्वजो धूमस्तथा सिंहः श्वा वृषश्च खरो गजः। काकश्चेति क्रमेणोक्तं बुधैरायाष्टकं गृहे॥२५५॥ (३.६१) (अन्वयः) बुधैः ध्वजः धूमः तथा सिंहः श्वा वृषश्च खरो गजः काकश्चेति क्रमेण आयाष्टकमुक्तम्। (अर्थः) विद्वानों के द्वारा क्रम से बताये हुए ये आठ प्रकार के आय (साधन) हैं। ध्वज, धुआँ, सिंह, कुत्ता, बैल, गधा,हाथी, कौआ आदि। [मूल] आयामविस्तराघाते शेषमायो गजोद्धते। विषमायाः शुभाः प्रोक्ताः स्वदिक्स्थाः सर्वगो ध्वजः॥२५६॥(३.६२) (अन्वयः) गजोद्धृते आयामविस्तराघाते शेषमायो । स्वदिक्स्थाः विषमायाः शुभाः प्रोक्ताः, ध्वजः सर्वगः। (अर्थः) वास्तु की लंबाई और चौडाई का गुणाकार करके (क्षेत्रफल नीकाल कर) आठ से भाग देने पर जो शेष संख्या बचती है वह आय है। विषम संख्या वाले (एक,तीन,पांच इ.) आय अपनी अपनी दिशा में शुभ है। ध्वज आय सर्व दिशा में शुभ है। [मूल] तस्मिन् क्षेत्रफलेऽष्टघ्ने भैर्भक्ते शेषऋक्षकम्। भेऽष्टभक्ते व्ययोऽपि स्याद् बह्वायं सद्गृहं व्ययात्॥२५७॥(३.६३) १. आठ नाम आयना जाणिवा। इति टीप्पणिः को२०००८, को१५९३२, ओ २८७८ २. अयं श्लोकः हस्तप्रतिषु न दृश्यते-को२०००८, को१५९३२, ओ २८७८
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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