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बुद्धिसागरः
(अर्थः) इस प्रकार आचार विचार को जाननेवाला, देशकाल के विभाग को जाननेवाला ऐसा राजा
सातसमुद्रों से युक्त, शत्रु से रहित ऐसे राज्य का उपभोग करता है। [मूल] लघूनपि च वर्द्धयन् कुसुमितान् विचिन्वन् शनैः,
क्षिपन्कुटिलकण्टकान् बहिरसौ समुन्मूलितान्। दृढं समधिरोपयन्विरहयन्मिथः संहतान्
भवेत्सुवनपालवत् कृतमतिः स्थिरो भूपतिः॥१२७॥(२.४०) (पृथ्वी) (अन्वयः) लघूनपि वर्धयन्, कुसुमितान् शनैः विचिन्वन्, समुन्मूलितान् कुटिलकण्टकान् बहिः क्षिपन्, दृढं
समधिरोपयन्, मिथः संहतान् विरहयन्, असौ कृतमतिः भूपतिः सुवनपालवत् स्थिरो भवेत्। (अर्थः) राजा माली के समान होता है। जिस प्रकार माली छोटे पौधों को बढाता है, खीले हुए पौधों को
हल्के से चनता है.कांटोंवाले पौधों को मल से उखाड कर फेंक देता है, एकमेक के साथ मिले हए पौधों को अलग करता है। उस प्रकार राजा भी छोटे व्यक्ति को बढाता है, सज्ज व्यक्ति को चुनता है,नुकसान करनेवाले व्यक्ति को मूल से उखाड कर फेंक देता है, एकमेक के साथ मिले हुए व्यक्ति को अलग करता है। ऐसा राजा अपनी बुद्धि के अनुसार राज्य कर सकता है और स्थिर होता है।
अथ राज्ञी। [मूल] कन्यां राजकुलोत्पन्नां राजलक्षणलक्षिताम्।
चारुशीलामहीनागीं यथाकालं समुद्हेत्॥१२८॥(२.४१) (अन्वयः) राजकुलोत्पन्नाम्, राजलक्षणलक्षिताम्, चारुशीलाम्, अहीनाङ्गीं कन्यां यथाकालं समुद्वहेत्। (अर्थः) राजकुल में उत्पन्न, राज लक्षण से लक्षित (युक्त), सदाचरणी, अंगो से परिपूर्ण ऐसी कन्या से योग्य
समय में विवाह करना चाहिए। [मूल| कुरुपाति सपत्नीषु नित्यमापरायणा।
स्वभर्तृनिन्दका चैव न सा योग्या नृपाङ्गना॥१२९॥(२.४२) (अन्वयः) कुरुपाति सपत्नीषु नित्यम् ईर्ष्यापरायणा स्वभर्तृनिन्दका च एव सा नृपाङ्गना न योग्या। (अर्थः) अति कुरूप अपने सौत के विषय में सदा ईर्ष्या करने में पारंगत और अपने पति की निंदा करनेवाली
स्त्री राजा की पत्नी (होने के लिए) योग्य नही है। [मूल] तुल्यसौन्दर्यगुणयोर्योग्यशीलवयस्कयोः।
दम्पत्योरनयोर्जातः कुमारो राज्यभाजनम्॥१३०॥(२.४३) (अन्वयः) तुल्यसौन्दर्यगुणयोः योग्यशीलवयस्कयोः अनयोः दम्पत्योः जातः कुमारः राज्यभाजनं (भवति)। (अर्थः) सौंदर्य और गुण जिसके समान है, जिसका सदाचरण और आयु योग्य है, ऐसे पति-पत्नी से जन्मा
हुआ कुमार राज्य करने के लिए पात्र है।