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________________ द्वितीयो नयतरङ्गः २३ [मूल] अशुद्धपाणिर्यो राजा परराष्ट्र प्रयाति चेत्। निश्चिन्तः सुखलोभेन स वशं वैरिणां व्रजेत्॥१२१॥(२.३४) (अन्वयः) यः अशुद्धपाणिः राजा परराष्ट्र प्रयाति चेत् निश्चिन्तः स सुखलोभेन वैरिणां वशं व्रजेत्। (अर्थः) अशुद्ध ऐसी सेना की पिछाडी से युक्त ऐसा राजा अन्यदेश को अगर जाता है वह सुख के लोभ से निश्चित ऐसा वह दुष्टों के वश हो जाता है। [मूल] सन्धिश्च विग्रहो यानं द्विधा मानं तथासनम्। संशयश्चेति षाड्गुण्यं नृपाणां विजयप्रदम्॥१२२॥(२.३५) (अन्वयः) सन्धिः च विग्रहः, यानम्, द्विधामानं तथा आसनम्, संशयः च इति षाड्गुण्यं नृपाणां विजयप्रदम्। (अर्थः) समन्वय करना, युद्ध करना, रथ चलाना, भेद करना तथा शत्रु के विरुद्ध डटे रहना और संशय करना यह छह गुण राजा को जय प्रदान करनेवाले हैं। मूल] रात्रावुलूकवशग: काकस्तद्वशगो दिवा। घूकस्तद्वच्च कालज्ञो बलाबलमुदीक्षयेत्॥१२३॥(२.३६) (अन्वयः) रात्रौ काकः उलूकवशगः च दिवा तद्(काकः)वशगः घूकः, तद्वत् कालज्ञः (राजा) बलाबलं उदीक्षयेत्। (अर्थः) रात में कौवा उल्लू के आधीन होता है और दिन में उल्लू कौवे के आधीन होता है, उसी प्रकार काल को जाननेवाला (राजा) बल अबल को देखे। [मूल] हन्ति सिंह जले नक्रः स्थले नक्रं च केसरी। इति देशविभागज्ञः क्षितिपो दुर्जयं जयेत्॥१२४॥(२.३७) (अन्वयः) नक्रः जले सिंहं हन्ति केसरी स्थले नक्रं (हन्ति) च इति देशविभागज्ञः क्षितिपो दुर्जयं जयेत्। (अर्थः) मगरमच्छ जल में सिंह को मारता है, और भूमि पर सिंह मगरमच्छ को मारता है, अतः देशप्रदेश के विभाग को जाननेवाला राजा कठिन ऐसे शत्रु को जितता है। [मूल] शत्रोरुन्मूलनं कार्यं विजितेनैव शत्रुणा। कण्टकेन करस्थेन कण्टकोद्धरणं यथा॥१२५॥(२.३८) (अन्वयः) करस्थेन कण्टकेन कण्टकोद्धरणं यथा (क्रियते तद्वत्) विजितेनैव शत्रुणा शत्रोरुन्मूलनं कार्यम्। (अर्थः) जिस प्रकार हाथ में काटें को लेकर कांटा निकाला जाता है, उसी प्रकार जिते हुए शत्रू के द्वारा दुसरे शत्रु का नाश करे। [मूल] इत्याचारविचारज्ञो देशकालविभागवित्। निष्कण्टकं नृपो भुङ्क्ते स पृथ्वीं सप्तसागरीम्॥१२६॥(२.३९) (अन्वयः) इति आचारविचारज्ञः देशकालविभागवित् स नृपः सप्तसागरी निष्कण्टकं पृथ्वी भुङ्क्ते ।
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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