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________________ बुद्धिसागरः (अन्वयः) नृपः मृगया, गर्हितानि द्यूतपानानि त्यजेत्, तेभ्यः पाण्डुनैषधवृष्णयः विपदम् आपन्नाः। (अर्थः) राजा को शिकार, निंदित ऐसी द्यूतक्रीडा, सुरापान (आदि) का त्याग करना चाहिए। उससे युधिष्ठिर, नल और यादव संकट को प्राप्त हो गए थे। मल| अभ्यासः सर्वदा कार्यः सर्वविद्यास पार्थिवैः। राजा सर्वकलायुक्तः शशाङ्क इव शोभते॥११६॥(२.२९) (अन्वयः) पार्थिवैः सर्वविद्यासु अभ्यासः सर्वदा कार्यः। (स)राजा सर्वकलायुक्तः शशाङ्क इव शोभते। (अर्थः) राजाओं को सदा सभी विद्याओं में (का) अभ्यास करना चाहिए। सब कलाओं से संपन्न ऐसा राजा चंद्र की तरह शोभता है। मूल] कामलोभादिभिर्लोको रौरवे मज्जति ध्रुवम्। यथापराधदण्डेन यदि राज्ञा न धार्यते॥११७॥(२.३०) (अन्वयः) यदि यथापराधदण्डेन राज्ञा लोकः न धार्यते, (तर्हि) कामलोभादिभिः (सः) ध्रुवं रौरवे मज्जति। (अर्थः) अगर अपराधानुरूप दंड से राजा के द्वारा लोक धारण नहीं किया जाए, तो कामलोभादि के द्वारा वह लोक निश्चित हि नरक में डूबता है (डूबेगा)। [मूल] प्राकारपरिखातोयधान्यदन्तितुरङ्गमैः। शूराप्तयन्त्रदैवज्ञैः संयुक्तो दुर्ग उच्यते॥११८॥(२.३१) (अन्वयः) प्राकारपरिखातोयधान्यदन्तितुरङ्गमैः शूराप्तयन्त्रदैवज्ञैः संयुक्तो दुर्ग उच्यते। (अर्थः) राजदरबार, चारों तरफ से तट(खाई), जल, धान्य, हाथी, अश्व, वीर, स्वकीय जन, यंत्र, ज्योतिषी आदि से युक्त दुर्ग कहा जाता है। [मूल] चतुरङ्गे बले पूर्णे यो न जातो स हीयते। स्वचक्रपोषणेनैव क्षीणोऽसौ दुर्नयं भजेत्॥११९॥(२.३२) (अन्वयः) यः चतुरङ्गे पूर्णे बले न जातो स हीयते स्वचक्रपोषणेनैव क्षीणः असौ दुर्नयं भजेत्। (अर्थः) जो चार प्रकार के बल(हाथीदल, अश्वदल, रथीदल, पदाति) से युक्त नही है उसका नाश होता है। खुद के राज्य के पालन से ही क्षीण हुआ है ऐसा वह दुर्नीति को प्राप्त होगा। [मूल] यस्य दुर्गं बलं तस्य यस्य दर्गं स दर्जयः। यस्य स्थानबलं सम्यक् शुद्धपाणिः स उच्यते॥१२०॥(२.३३) (अन्वयः) यस्य दुर्गं तस्य बलं यस्य दुर्गं स दुर्जयः यस्य सम्यक् स्थानबलं शुद्धपाणिः स उच्यते। (अर्थः) जिसका दुर्ग है उसका बल है (इसी कारण से) जिसका दुर्ग है वह दुर्जय है। जिसका अच्छा राज्यबल, सेना की पिछाडी अच्छी है (सेना के पिछली भाग का रक्षण करनेवाला) वह राजा कहा जाता है।
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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