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________________ (२५) सोनी वर्धमान, सोनी पासदत्त और सोनी जिनदास, सोनी गडरमल, सोनी गोपाल इत्यादि जैन परिवारों के बारे में उल्लेख प्राप्त होता है। सोनी संग्रामसिंह धनी एवं दानी था साथ ही ज्ञानी था, कवि था और युद्ध भूमि पर अजेय वीर था। मालवा के बादशाह मेहमूद ने दक्षिण के बादशाह निजाम शाह को जीतने के लिए वि.सं. १५२० में चैत्र सुद ६ के दिन शुक्रवार को, मांडवगढ से प्रयाण किया तब सोनी संग्राम भी उसके साथ गया था और बादशाह जब विजय प्राप्त करके वापस लौट रहा था तब गोदावरी के किनारे प्रतिष्ठानपुर (पैठण) मे आया तब कवि संग्राम सोनी ने वहां के जिनप्रसाद में जिनेश्वर के दर्शन करके 'बुद्धिसागर' नामक संस्कृत भाषा के काव्य ग्रंथ की रचना की। जिसके ४ तरंग ( विभाग) एवं कुल ४११ श्लोक की रचना की थी। कुल मिलाकर संग्राम सोनी बारहव्रत धारी श्रावक था। सच्चरित्रवान पुरुष था। वह कवि कल्पतरु था। कवित्व के बारे में उसे पूर्ण ज्ञान था। अनेक ग्रंथो में अनेक आचार्य भगवंतो ने रचनाकारों ने संग्राम सोनी के बारे में बहुत कुछ लिखा है। आज भी उनकी जिनभक्ति व श्रुतभक्ति कीर्तिकथाएं गायी जाती है। गिरनार महातीर्थ पर तो संग्रामसोनी की टोंक के उपर सहस्रफणा पार्श्वनाथ भगवान का जिनालय आज भी उनकी कीर्ति को दोहरा रहा है। मालवी भाषा के लहजे में कहा जाए तो अणी रे जेरो कोई कोनी जैसो वियो संग्राम सोनी १. पैठण महाराष्ट्र के इतिहास में विगत् २५०० वर्षों से अपना स्वतंत्र स्थान रखता है प्राचीन काल से यह गांव 'दक्षिण काशी' नाम से पहेचाना जाता है। पूर्व काल में इसका नाम प्रतिष्ठानपुर था । यह सातवाहन राजाओं की राजधानी थी उस काल से लेकर अब तक पैठण के पंडितों का धर्मनिर्णय आखरी माना जाता है। आचार्य श्री भद्रबाहुस्वामीजी तथा वराहमिहिर पैठण से थे। आचार्य श्री हीरविजयसूरिजी मुनि अवस्था में यहां शास्त्र अभ्यास हेतु आये थे। (Ref. - Google Wikipedia) २. नखेषुभू१५२०सम्मितविक्रमाब्दे पञ्चेभरामेन्दु१३८५मिते च शाके । चैत्रस्य षष्ठ्यां सितपक्षजायां शुक्रस्य वारे शशिभे गविन्दौ॥४११॥ (बुद्धिसागर) चापोदये वीर्ययुतैश्च खेटैः श्रीमालवे महमूदभूपे। जेतुं महीपालनिजामसाहिं युद्धेन याते दिशि दक्षिणस्याम्॥४१२॥ (बुद्धिसागर) लसत्प्रतिस्थानपुरेऽतिरम्ये गोदावरीतीरतरङ्गपूते। जिनं प्रणम्येह सुबुद्धिसिन्धुं सङ्ग्रामसिंहः कुरुते कवीन्द्रः॥ ४१३॥ (बुद्धिसागर) श्रीमद्दक्षिणभूपतिं जितवतः कुम्भेभपञ्चाननस्योद्यद्गुर्जरगर्वपर्वतमहत्पक्षच्छिदो ग्रासने। खल्वीश्रीमहमूदसाहिनृपतेर्विश्वासमुद्राधरः, सङ्ग्रामः स्वकलत्रमित्रविलसत्पुत्रैश्चिरं जीवतु ॥ ४१४॥ (बुद्धिसागर)
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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